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जहांगीरनामा।

उनकी पवित्र आत्मासे सहायता मांगने लगा। इतने ही में मिरजा शाहरुखका बेटा मिरजा हसन जो खुसरोके पास जानेका उद्योग कर रहा था पकड़ा आया और पूछ ताछ करने पर असल बातसे इनकार न कर सका। बादशाह इसको अपने पिताके अनुग्रहका पहिला शुभशकुन समझकर आगे बढ़ा। जब दोपहर हुआ तो एक वृक्षको छायामें ठहरकर खानआजमसे बोला कि सब तरहसे शान्तचित्त होने पर भी जब हमारी यह दशा हुई है कि मामूली अफीम भी जो पहरदिन चढ़े खानी चाहिये थी अबतक नहीं खाई है न किसीने याद दिलाई है तो उस कपूतका क्या हाल होगा ? मुझे इसी बातका दुःख है कि बेटा बिना कारणही बैरी होगया। जो उसके पकड़नेकी दौड़धूप न करूं तो लुच्चे लोग बल पकड़ जावेंगे या वह भागकर उजबक(१) तथा कजलबाश(२)के पास चला जावेगा जिसमें इस राज्यकी हलकी होगी।

निदान बादशाह थोड़़ासा विश्राम लेकर फिर चला और मथुरा होकर जो आगरेसे बीस कोस है, उसी परगनेके एक गांवमें ठहरा। वह गांव मथुरासे दो तीन कोस था। वहां एक तालाब भी था।

खुसरों जब मथुरा में पहुंचा तो हुसैन बेग बदखशी जो काबुल मे दरबार में आता था दो तीन सौ सवारोंसे उसको मिला और उस लुच्चाईसे जो बदखशांके लोगों में स्वाभाविक होती है अगुआ और सेनापति बनकर साथ होगया। वह और उसके आदमी रास्ते में मुसाफिरों ब्यापारियों और प्रजाको लूटते जाते थे। खुसरो देखता था कि किस प्रकार उसके बाप दादोंके राज्य में अन्याय होरहा है और कुछ नहीं कह सकता था।

बादशाह लिखता है कि यदि उसका भाग्य बलवान होता तो लज्जित होकर बेधड़क मेरे पास चला आता और ईश्वर साक्षी है


(१) तूरानी लोग।
(२) ईरानी लोग।