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जहांगीरनामा।

"जिन नियमों पर पूज्य पिताजी चलते थे उनमेंसे एक मांस- त्याग भी था। सालमें तीन मास मांस खाते थे और नौ मास न खाते थे। पशुवधको रुचि उनको कदापि न थी। उनके शुभ शासनकालमें बहुतसे दिन और महीने ऐसे नियत थे जिनमें पशुवध का सर्वथा निषेध था। अकबरनामे में उनका वर्णन है।"

रोजा ईद।

यह पहली ईद(१) थी इस लिये जब बादशाह ईदगाहको गया तो बहुत भीड़ होगई थी। आपने दौलतखाने (राजभवन) में लौट कर खैरातके वास्ते कई लाख दाम दोस्तमुहम्मदको, एक लाख(२) मीर जमालहुसैन अंजू मौरान सदरजहां, मीर मुहम्मद रजा सजवारी को और पांचहजार रुपये शैख मुहम्मदहुसैनजामीके चेलेको दिये। आज्ञाकी कि हरेक मनसबदार नित्वं एक मुन्य ५० हजार दाम(३) भिक्षुकोंको दिया करे। हाजी कोकाको हुक्म दिया कि हररोज हकदार स्त्रियोंको जमीन और नकद रुपये दिलानेके लिये महलमें भेजा करे।

फिर काई कनुष्योंको हाथी घोड़े दिये। नकीब और तवेलेके कर्म्मचारी जो ऐसे लोगोंसे कुछ रुपये जलवानेके नामसे लिया करते थे बादशाहने उनको वह रकम सरकारसे देनेको आज्ञा देकर उनसे लोगोंका पीछा छुड़ाया।

हाथी नूरगंज।

शालिवाहन बुरहानपुरसे सुलतान दानियालके हाथी घोड़े ले कर आया। उनमेंसे मस्तअलस्त नाम हाथीको बादशाहने पसन्द करके नूरगञ्ज नाम रखा। उसमें अनोखापन यह था कि उसके कानों के पास दोनो ओर दो तरबूजोंके बराबर मांस उठा हुआ था


(१) फागुन सुदी २ संवत् १६६२
(२) अढाई हजार रुपये।
(३) सवा हजार रुपये।