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जहांगीर बादशाह संवत् १६६२।

खास करके इस सफर में ईश्वरकी सहायताका भरोसा है जाहरी बातों पर नजर होती तो इस प्रकार छड़ी सवारीसे धावा करके नहीं आते। अब शत्रु लड़नेको तय्यार है तो हमको देर करना उचित नहीं। यह कहकर ईश्वर पर भरोसा करके अपने कई सेवकों सहित नदीमें घोड़ा डाला। नदी छिलछिली न थी तोभी कुशलपूर्वक पार होगये। फिर अपना दो बुलगा(१) मांगा तो कोरदार(२)ने धबराहटमें लाते हुए आगे डाल दिया। शुभचि- न्तकोंने इसको अपशकुन समझा। आपने कहा कि हमारा शकुन तो बहुत अच्छा हुआ है क्योंकि हमारे आगेका रस्ता खुल गया। इतने में मिरजा सेना सजाकर अपने खामीसे सामना करनेको आया।"

"खानाजमको इस बातका शान गुमान भी न था कि हजरत इतनी फुरतीसे यहां पधार जावेंगे। जब कोई उसे हजरतके आने का समाचार कहता था वह स्वीकार न करता था । निदान जब उसको अनुमानों और प्रमाणोंसे आपके पधारनेका निश्चय होगया तो गुजरातके लशकरको सजाकर किलेसे बाहर निकलनेको तय्यार हुआ। आसिफखांने भी उसको यह खबर भेजी परन्तु उसके किलेसे निकलने के पहलेही शत्रुका दल वृक्षोंमेसे निकल आया और आप उस पर चले। मुहम्मद कुलीखां तोकताई और तरदीखां दीवाना कुछ शूरवौरीसे आगे बढ़ तो गये थे पर थोड़ी दूर जाकर पीछे फिरे । तब आपने राजा भगवानदाससे फरमाया कि दुश्मन बहुत हैं और हमारे आदमी थोड़े हैं, हम सबको एक दिल होकर हमला करना चाहिये क्योंकि बंधी हुई मुट्ठी खुले हुए पंजेसे जियादा क रगार होती है। यह कहकर तलवार खेंची और साथियों सहित अल्लाहोअकबर और या मुईन कहते हुए दौड़े। दहनी


(१) दोबलगेका अर्थ कोषों में नहीं मिला यह कोई ऐसे हथि-

यार अथवा बकतर वगैरहका नाम है जो गिरनेसे खुल जाता हो।

(२) हथियार रखनेवाला।