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जहांगीर बादशाह स० १६६२।

आये। बैरमखांने तसहीवेगको माग आनके अपराधमें मारडाला।

"हेमूं इस जीतमे घमण्ड में आकर कलानूरकी ओर बढ़ा। पानीपतके मैदान में २ मोहर्रम गुरुवार सन् ८६४(१) को तम और तेजके पुञ्ज परस्पर भिड़े। हेमूकी सेनामें ३० हजार जङ्गी सवार थे और पिताजीके पास चार पांच हजारसे अधिक न थे। हेमू हवाई नामक हाथी पर चढ़ा हुआ था कि अकस्मात उसकी आंख मे तीर लगकर सिरमेंसे निकल गया। यह दशा देखकर उसकी फौज भाग निकली। दैवयोगसे शाहकुलोखां महरम हाथोके पास पहुंचकर महावत पर तीर मारता था। वह चिल्ला उठा मुझे मत मारो हेमू इसी हाथी पर है। फिर तो लोग दौड़ पड़े और उसको उसी दशा में पिताजीके पास लाये। बैरमखांने प्रार्थना को कि हजरत इस काफिरको मारकर गिजा (धर्मयुद्ध) के पुण्यको प्राप्त हो और आज्ञापत्रों में गाजी लिखे जावें।"

"आपने फरमाया कि मैं तो इसको पहलेही टुकड़े टुकड़े कर चुका। काबुलमें जबकि मैं खाजा अबदुस्समद शौरीकलमसे चित्र- कारीका अभ्यास करता था तो एक दिन मेरी लेखनीसे एक ऐसी तसवीर निकली कि जिसके अंगप्रत्यंग भिन्नभिन्न थे। एक पास रहने वालेने पूछा कि यह किसकी मूर्ति है तो मेरे मुंहसे निकला कि हेमूकी है।"

"निदान अपने हाथको उसके लोहसे न भरकर एक सेवकको उसके मारनेका हुक्म देदिया। उसके सिपाहियोंकी ५००० लाशें तो गिनी गई थीं उनके सिवा और भी इधर उधर पड़ी थीं।"

उनके दूसरे बड़े कामोंमसे गुजरातकी फतह और दौड़ है। जब इब्राहीमहुसैन मिरजा, मुहम्मदहुसैन मिरजा और शाह मिरजा, बागी होकर गुजरातको गये और वहांके सब अमीरों (२) और दुराचारियोंसे मिलकर अहमदाबादके किले को घेरलिया जिस


(१) अगहन सुदी ३ सम्बत् १६१३।
(२) यह अमीर गुजरातके अगले बादशाह मुजफ्फरके नौकर थे।