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जहांगीर वादगाह सं० १६६२।

शेखावत जातिके कछवाहोमिस है। मेरे बाप बचपन में उससे बहुत मोह रखते थे। यह फारसी बोलता था। उससे लेकर आदम तक उस घरानिके किसी आदमी में भी समझका होना नहीं कहा जा सकता है। परन्तु वह समझसे शून्य नहीं है और फारसीकी कविता भी करता है।"

यह लिखकर बादशाहने उसकी बनाई एक बैत भी लिखी है जिसका अर्थ यह है--छायाकी उत्पत्तिसे यही प्रयोजन है कि कोई सूर्य भगवानके प्रकाश पर अपना पांव न धरे।

इस लड़ाई में बहुतसे अमीरों, खानीक बेटी और राजपूतोंने अपनी इच्छासे जानेको प्रार्थना की थी। एक हजार अहदियों (इक्कों) को नौकरी भी उक्त लड़ाई के लिये बोली गई थी।

बादशाह लिखता है--"सारांश यह है कि यह ऐसी फौज तय्यार हुई है कि काम पड़े तो बड़े बड़े शक्तिमान श्रीमानोंमेंसे हरेकका सामना करे।

दान पुण्य और प्रदवृद्धि ।

बादशाहने २० हजार रुपये दिल्लीके गरीबों के लिये भेजे।

सब बादशाही राज्यकी विजारत [माल] का काम आधा आधा वजीरुलमुल्क और वजीरखांको बांट दिया।

शेख फरीद बखशीको चार हजारीसे पंज हजारी किया।

रामदास कछवाहेका मनसब दो हजारीसे तीन हजारी कर दिया वह अकबर के कृपापात्र सेवकोंमेंसे था ।

कन्दहारके हाकिम मिरजा रुस्तम, अबदुर्रहीम खानखाना, उत्तके बेटों परच, दाराब और दक्षिणमें रखे हुए दूसरे अमीरों के वास्ते सिरोपाव भेजे गये।

बाज बहादुरको चार हजारी मनसब बीस हजार रुपये और उड़ीमेको सूवेदारी मिली। उमका बाप निजाम, हुमायूं बादशाह को किताबें रखा करता था। सदरजहांका मनसब दो हजारीसे चार हजारी कर दिया। वह बादशाहके साथ पढ़ा था और उसके