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जहांगीरनामा।

हाथी देकर बिदा किया। बीस हजारके लगभग हथियार- बन्द सज हुए सवार अच्छे सरदारों सहित लड़ाई में भेजे ।

आसिफखां दीवानको खिलअत जड़ाऊ कमरपेटी हाथी घोड़ा और शाहजादेको "अतालोकी" का काम मिला और सब छोटे बड़े अमीरोंको उसकी सलाह पर चलने का हुका दिया गया।

अबदुलरज्जाक मामूरी बखशी और मुखतारबेग शाहजादेका दीवान हुआ।

राजा भारमलके बेटे जगन्नाथको जो पांच हजारी था खिलअत और जड़ाऊ परतला मिला।

राजा सगर, राना(१)का चचा था और अकबर बादशाह उसको राना पदवी देकर खुसरोके साथ रानाके ऊपर भेजना चाहता था पर इसी बीच में मर गया। जहांगीरने उसे भी खिलअत और जड़ाऊ पट्टा देकर परवेजके साथ कर दिया।

राजा मानसिंहके भतीजे माधवसिंह(२) और सेखावत रायसाल दरबारीको इस हेतु कि वह दोनों उसके पिताका विश्वासपात्र और तीन हजारी मनसबदार थे झंडे दिये।

इनके सिवा शेरखां पठान, शेख अबुलफजलका बेटा शैख अब- दुर्रहमान, राजा मानसिंहका पोता महासिंह, वजीर जमील और कराखां जो दो दो हजार सवारोंके मनसबदार थे घोड़े और सिरोपाव पाकर शाहजादेके साथ बिदा हुए और राजा मनोहर भी गया।

बादशाह मनोहरके विषय में लिखता हे--"राजा मनोहर


(१) तुजुक जहांगीरीमें इसका नाम शंकर और रानाका चचेरा भाई लिखा है। पर यह राना अमरसिंहका चचा था क्योंकि

राना उदयसिंहना बेटा और प्रतापसिंहका भाई था।

(२) माधवसिंह मानसिंहका भाई था भतीजा न जाने कैसे

तुजुकमें लिखा है।