५—किसी के घर को सरकारी न बनावें।
६—किसी पुरुष के नाक कान किसी अपराध में न काटे जावें और मैं भी परमेश्वर से प्रार्थना कर चुका है कि इस दण्ड से किसी को दूषित नहीं करूंगा।
७—खालिसे के और जागीरदारों के बेचारी प्रजाकी पृथ्वी अन्यायसे न लें और न आप उप्तको वोवें।
८—खालिसेके और जागीरदारों के कर्म्मचारी जिस परगनेमें हो वहां के लोगों में बिना आज्ञा सम्बन्ध न करें।
९—बड़े बड़े शहरों में औषधालय बनाकर रोगियों के लिये वैद्यों को नियत करें और जो खरच पड़े वह सरकारी खालिसे से दिया करें।
१०—रबीउलअव्वल महीने की १८ तारीखसे जो मेरे जन्मकी तिथि है मेरे पिता की प्रथाके अनुसार प्रतिवर्ष एक दिन गिनकर इन दिनों में जीव हिंसा न करें प्रत्येक सप्ताह में भी दो दिन हिंसा न ही, एक तो वृहस्पतिवार को जी मेरै राज्याभिषेक का दिन है और दूसरे रविवार को जो मेरे पिता का जन्मदिवस है। वह इस दिनको शुभ समझ कर बहुत माना करते थे क्योंकि उनके जन्मदिन होने के अतिरिक्त सूर्य्य भगवान का भी यही दिन है और यह जगत्को उत्पत्तिका पहला दिन है। सो बादशाही देशों में जीवहिंसा न होने के दिनों में से एक दिन यह भी था।
११—यह स्पष्ट आज्ञा है कि मेरे पिता के सेवकों के समसब और जागीरें ज्यों को त्यों बजी रहे। वरंच यथायोग्य हरे एक का पद बढ़ाया जावे(१)। और सब सुलकीके माफीदारीको माप्तियां
पहले काई समय थे। कभी कभी पिछले ३-३ घण्टे दिन से प्रारम्भ कर देता था और कभी दिन में ही पीने लगता था। ३० वर्षको अवस्था तक तो यही ढंग रहा फिर रात का समय स्थिर किया। अब तो केवल भोजन का स्वाद लेने के वास्ते पीता हूं।
(१) बादशाह लिखता है कि फिर मैंने यथायोग्य सबके मनसब