पृष्ठ:जहाँगीरनामा.djvu/३९

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२३
जहांगीर बादशाह सं० १६६२।

"जब मेरा जन्म समय आया तो पिताने मेरी माताको शैखके घर भेज दिया और वहां तारीख १७ रबीउलअब्वल बुधवार सन् ९७७ को ७ घड़ी दिन चढ़े पीछे तुलाराशिक २४ वें अंशमें मेरा जन्म हुआ और सुलतान सलीम नाम रखा गया। परन्तु मैने पिता के श्रीमुखसे उन्मादमें भी कमी नहीं सुना कि उन्होंने मुझे मुहम्मद सलीम या सुलतान सलीम कहा हो। वह सदा शैखू बाबा कहा करते थे। मैं जब बादशाह हुआ तो मेरे मनमें आया कि अपना नाम बदल देना चाहिये क्योंकि उस नाममें रूमके बादशाहों के नामका धोखा होसकता था। बादशाहीका काम जहांगीरी अर्थात् जगत् जीतनेका है इस लिये जहांगीर नाम रखनको देवसे प्रेरणा मेरे हृदयमें हुई। मेरा राज्याभिषक सूर्य निकलतेही हुआ था जब कि पृथ्वी प्रकाशमयी होगई थी इस हेतु मैंने उप- नाम नरूद्दीन रखना चाहा और भारतके विद्वानोंचे सुना भी था कि जलालुद्दीनके पीछे नरुद्दीन बादशाह होगा इन बातोंसे मैंने नाम और उपनाम नूरुद्दीन जहांगीर बादशाह रखा। यह बड़ा काम पागरेमें हुआ उसका कुछ हाल लिखना जरूरी है।"

"आगरा हिन्दुस्थानके बड़े शहरोंमेंसे है। वह यमुनाके किनारे बसता है। यहां पुराना किला था। मेरे पिताने मेरे जन्म लेने से पहले उसको गिराकर तराशे हुए लाल पत्थरीका किला बनाया। वैसा किला पृथ्वी पर्यटन करनेवाले कहीं नहीं बताते हैं। यह १५-१६ वर्षों में तय्यार हुआ था। उसके चार दर- वाजे बड़े और दो छोटे हैं। ३५ लाख रुपये इस पर खर्च हुए थे। जो ईरानके १ लाख १५ हजार तूमान और तूरानको १ करोड़ ५ लाख खानीके बराबर थे।


अन्तर है क्योंकि मुसलमान लोग तारीख पंचांगसे नहीं मानते चन्द्रदर्शनसे मानते हैं।

जहांगीर अगहन बदी १ गुरुवारको तख्त पर बैठा था।