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संवत्१६७४।

संवत् १६७४। .. गुजगतीक रनेका समाचार उम्दामादसे आया। अच्छा सेवक

  • मुजालको व्यवसका पूरा नाता था। इससे बाधाहका

वित्त उदात जुधा! सजवन्ती। बादशाह लिखता है कि इस तालमें एक दूब देखी गई जिसको परो उंगली या लकड़ीकी नोक लगतेही सुकड़ जाते हैं और कुछ देर पोछे पिनर खिल जाते हैं। यह इमलीके पत्तोले मिलते हुए होते हैं। इसका नाम अरबी भाषामें लज्जाका वृच है हिन्दी लजवन्ती कहते हैं। यह भी अनोखी है और नाम भी अनोखा है। सिंहका शिकार। २२ सोमवार (जेच बदी १) को वहीं सुकाम रहा। बादशाह ने बन्दूक एका वड़ा शेष मारा जो ७॥ अनका था। वह इससे भी बड़े बड़े बहुत मार चुका था। जो माण्डोंगढ़में मारा था वह ८॥ मनका था। २३ (मंगलवार) को ३॥ बोस चलकर बायव नदी और २४ इधवारको ६ कोसके लगभग हमदहके तालाब पर मुकाम हुआ । २५ को वहां प्यालेको मजलिस हुई। प्याले देवार निज सेवकों का मान बढ़ाया गया। नवाजिशखां पांच सदी जातके बढ़नेसे तीन हजारो जात दो हजार सवारका मनसब और हाथो सिरोपाव पाकर अपनी नागौर को बिदा हुद्या। बलखके घोड़े। ' मुहन्यदहुसैन सबजक घोड़े खरीदनेके लिये बलखाको अजा गया था। उसने इसी दिन श्राकर योढ़ी चूमौ । उसको लाये हुए घोड़ोभिसे एक अबरश घोड़ा बादशाहको बहुत पसन्द पाया। वैशा सुरंग और सुडौल घोड़ा अबतक उसने नहीं देखा था। वह और भी पाई राहवार घोड़े अच्छे लाया था। बांग्याइने उसको तिजारतखांकी पदवी दौं।