३१२ जहांगीरनामा। यहां पागया हो तो चाहिये कि कोई भी विमुख न रहे। खुदा गवाह है कि इस उद्योगमें मैंने कोई कसर नहीं रखी है और किसी समय भी इस काम करनेसे निश्चिन्त नहीं बैठ रहा ३। यद्यपि अहमदाबादमें भानेले कुछ वर्ष नहीं हुआ है तो भी अपने ज्ञानी मनको इस अनुभवसे प्रसन्न रखता कि मेरा आना दौन दरिट्रोंके एक बड़े अण्डको जीविकाका हेतु हुआ है और बहुत लोग निहाल होगये हैं। . कोकबको विचित घटना। १६ अंगलवार (फागुन सुदी १०) को कमरखांका बेटा और मौर अबदुललतीफ कजवीनीका पोता कोकब पकड़ पाया। यह पीढ़िवोंका मौकार था दक्षिणको सेना संयुका था। कई दिन तक वहां रह से संग रहा और इसके अतिरिक्ता बहुत वर्षों तक मनसब में कुछ भी सद्धि नहीं हुई थी इस लिये बादशाहको सपा न होने के अमले विरा होकर बुरहानपुरसे निकल गया और ६ महीने तक दक्षिणके सब देशी दौलताबादसे बिदुर बीजापुर करनाटक. और गोलकुण्डे पर्यन्त फिरकार दावुल बन्दरमें गया। वहांसे. भावमें बैठदार बन्दर मोघेने आया। . सूरल बन्दर भड़ौच और मार्गको दूसरी बस्तियोंको देवडता छुअा अहमवाबादमें पाया था कि शाह- जहांका एक नौकर जाहिद उसको पकड़कर दरगाहमें लाया । बादशाहने देखकर पूछा कि तुमने वंशपरम्परासे सेवामें रहने पर भी ऐसा कपूतपन क्यों किया ? उसने अर्ज की कि सतगुरु और सच्चे खासीको सेवा प्रसव्य नहीं कहा जाता। सत्य यह है कि पहले तो हापाभिलाषी था परन्तु जब आग्य अनुकूल न हुआ तो घर छोड़कर अंगलको निकख गया। बादशाह बिखता है कि उस की बाणोको सत्यता मेरे दिल खुब गई और मैंने क्रूरता छोड़कर पूछा कि इस नसणमें “तूमे पादिलखां, कुतुबुलमुल्का और अंबरको भी देखा था? उसने सविनय कहा-जब मेरे प्रारब्बने इस दरगाहमेंही सहायता न की और अपार समुद्र कंपो
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जहांगीरनामा।