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जहांगीरनामा।


सूनायत किया । रुस्तमखां शाहजहांके मुख्य सेवी से था । बादशाह लिखता है कि इस राज्य में यह प्रथा नहीं थी कि शाह. जादोंके सेवकोंको झण्डा और नकारा दिया जाये। मेरे पिताको मुझ पर बहुत कपा थी तो भी उन्होंने मेरे अनुचरोंको वास्त की पदवी नक्कारे और झण्डे देनेकी चेष्टा नहीं की। परन्तु मुझ शाह- जहाँसे इतना अधिक छह है कि मैं लेशमात्र ी कभी उसकी मनोकामना पूर्ण करनेसे विमख नहीं रहता है। वास्तवमें वह. मेरा सपूत बेटा है और सम्पूर्ण कपाओंका पात्र है। युवावस्था और राजलक्ष्मी प्राप्त होनेके पीछे जिधर उसने चढ़ाई की है. उधर मेरी इच्छाके अनुमार लड़ाई जीती है।

इसी दिन मुकर्रबखांको घर जानेकी आज्ञा हुई ।

बादशाहने कुतुबालमको कबर पर जाकर वहां के मुजावरीको पांच सौ रुपये दिये।.

६ असान्दार शनिवार ( फागन बदी १४ तथा अमावस ) को बादशाहने महमूदाबादको नदीमें नाय पर जाकर मछलोका शिकार किया।

सैयद मुबारकका सवाबरा ।

इसी नदीके तट पर सैयद मुबारकका मकबरा उसके बेटे सैयद मोराने दो लाख रुपयेसे अधिक लगाकर बहुत पक्का और ऊंचा बनाया था। बादशाह उसके विषयमें लिखता है कि गुजराती बादशाहोंके मकबरे जो देखे गये तो उनमें कोई इसका दशमांश भी नहीं है अथच वह देशाधिपति थे और यह नौकर था। श्रद्धा और साहस परमेश्वरका दिया हुआ होता है। सहस्रों धन्यवाद है ऐसे पुत्रको जिसने अपने पिसाका ऐसा मकबरा बनाया है।

सकलोमें मछली।

रविवार (फागुन सुदी १) को भी वहीं डेरे रहे। चारसौ मछ- लियां शिकार हुई। एक बिना छिलके की थी जिसे संगमाहौ कहते हैं। ‘बादशाहने उनका पेट बहुत बड़ा देखकरं चिरवाया