पृष्ठ:जहाँगीरनामा.djvu/३२१

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संवत्१६७४।

संवत् १६७४। __११ (माघ बदौ १२) मंगलके दिन कोतवाल एक चोरको पकड़ कर लाया जो पहले कईबार चोरियां करचुका था और प्रति चोरी में उसका एक एक अंग काटा गया था। पहली बार दहना हाथ , दूसरी बार बाई उङ्गलौ, तीसरी बार बायां कान और चौथी बार दोनों पावोंको फौचें काटी गई थीं। तोभी उसने अपनी आदत नहीं छोड़ी थीं। रातको एक घसियारेक घरमें घुसा था उसने जागकर पकड़ लिया पर इसने उसे कुरियोंसे मार डाला। इस पर बड़ा कोलाहल हुआ और घसियारके भाईबन्दोंने आ पकड़ा। बादशाह ने उन्हींको सौंपकर-दण्ड देनेको आज्ञा देदी। १२ (माघ वदी १३) वुधको बादशाहने तीन हजार रुपये अज- मतखां और मोतविादखाको दिये कि अलग अलग शैख खष्ट की कबर पर जाकर वहांके मुजावरों और गरीबोंको बांटदें। . १३ (माघ बदौ ४) गुरुवारको बादशाहने शाहजहांके डेरे पर जाकर गुरुवारका उत्सव किया और मुख्य मुख्य सेवकीको प्याले दिये। शाहजहां सुन्दर मथन हाथोको मांगा करता था जिसे अकबर बादशाह बहुत प्यार करता था और जो घोड़ेके साथ खूब दौड़ता था। अब बादशाह वह हाथी सोनेके गहनों, सांकलों और एक हथनी सहित उसको देआया। । खुर्दा। . इन दिनों में समाचार मिला कि मुअज्जमखांके बेटे मुकरमखां उड़ीसाके सूबेदारने खुर्दाको विलायत जीत ली और वहांका राजा भागकर राजमहेन्द्रौमें चला गया। बादशाहने मुकर्रमखांका मन- सब बढ़ाकर तीन हजारो और दो हजार सवारोंका कर दिया। घोड़ा सिरोपाव और नकारा भी बखशा। बादशाह लिखता है कि उड़ीसा और गोलकुंड के बीचमें दो जमींदारोंकी आड़ थी एक खुका दूसरा गजमहेन्द्रीका। सो खुदी तो बादशाही बन्दोंके अधीन होगया है अब दूसरेको बारी है।