उस वक्त दरबारमें राजा मानसिंह और खानआजम कर्त्तमकर्ता थे। खुसरो राजाका भानजा और खान आजमका जमाई था इस- लिये ये दोनों बादशाहके पोछे खुसरोको तखत पर बिठानेके जोड़ तोड़ में लगे हुए थे और जो लोग शाह सलीमको नहीं चाहते थे वह सब इनके पेटेमें थे! शाहने यह सब हाल देखकर किले से आना जाना छोड़ दिया, पर शाहजादे खुर्रमने दादाकी पाठौं नहीं छोड़ी। उसकी माने बहुत कहलाया कि इस वक्त में दरबार दुशमनोंसे भरा हुआ है वहां रहना अच्छा नहीं है बल्कि शाहके आज्ञासे उसकी माने खुद भी आकर यही बात उससे कहो पर उसने जवाब दिया कि जब तक दादा साहिबका दम है मैं उनकी खिदमतसे अलग होना नहीं चाहता।
इन्हीं दिनोंमें सलीमको लौंड़ियोंसे दो बेटे जहांदार और शहरयार नामक और पैदा हुए। जो लोग सलीमको जगह खुसरोको बादशाह बनाना चाहते थे उन्होंने सलीमको मौजूदगी में जब अपनी बात चलती न देखी तो लजाकर सलीमकी सेवा में आये। तब सलीम दूसरे दिन बापको देखने गया और शाहजादे खुर्रमको शाबाशी देकर अपने दौलतखानेमें लेआया।
१३ जमादिउस्मानी (कार्तिक सुदी १५ संवत् १६६२) बुधवार को रातको बादशाहका देहान्त होगया। दूसरे दिन वह सिक- न्दरेके बागमें दफन किया गया और शाह सलीम अपना नाम जहांगीर बादशाह रखकर आगरेके किलेमें तख्त पर बैठा। आगे जो कुछ हुआ वह जहांगीरने खुद अपनी कलमसे लिखा है।
नूरजहां बेगम।
नूरजहांका दादा खाजा सुहम्मद शरीफ तेहरानी था वह खुरा- सानके हाकिम मुहम्मदखांका वजीर था। फिर ईरानको बादशाह तेहमास सफवीका नौकार होकर सर्वके सूबेका वजीर हुआ। उसके दो बेटे आका ताहिर और मिरजागयासबेग थे ।