जहांगीरनामा। इस देश में शासन करने को आते रहे हैं। अब जो मैं मंडूसे अह- मदाबादको चला तो मुकर्रबखांने पुराने स्थानीको नये सिरसे ठीक किया और जरूरी नये मकान ी बनवाये जैसे झरोखा मामखास आदि। आज शाहजहांके तुलादानका शुभदिन था। मैंने नियमानुसार सुवर्ण और दूसरे पदार्थों में उसको तोला। उसे अबसे २७ वां वर्ष लगा है। आजही गुजरातका देश भी उसको जांगौर में दिया गया। मांडूको किलेसे बन्दर खम्भात जिस रास्ते में प्रायो धा १२४ कोस था २८ कूच और ३० मुकाम हुए ये खम्भातमें दंख दिन रहा था-वहांसे अहमदाबाद २१ कोस था जो ५ कूच और दो मुकाम में काटे गये। इस तरह पर हम मांडूसे खम्भात होकर १४५ कोस २ महीने १५ दिनमें पाये। सब मिलाकर ३३ कूच और ४२ सुकाम हुए। जामा सजिद। २६ (माघ सुदी ) मंगलको बादशाह नामा मसजिद देखनेको गया जो अहमदाबादके बाजारों है। वहांके फकीरोंको पांच सौ रुपये दिये। वह लिखता है-यह मसजिद सुलतान अहमदको बनाई हुई है उसीने अहमदाबाद बसाया है। इसके तीन दरवाजे हैं और तीनोंके आगे बाजार हैं। जो दरवाजा पूर्वको है उसके सामने उक्त सुलतानका कबरस्तान है जिसमें वह, उसका बेटा मुहम्मद और पोता कुतुबुद्दीन सोये हुए हैं। मसजिदके चौकको लम्बाई कोठड़ियोंको छोड़कर १०३ और चौड़ाई ८० गज है। फिर ४॥ गज चौड़े दालान हैं। चौकों किली हुई ई टोंका फर्श है। दालानों के खम्बे लाल पत्थरके हैं और कोउड़ियोंके खम्बे ३५४ हैं। खम्बों के ऊपर गुस्बद बने हैं। कोठड़ियोंकी लम्बाई ७५ गज है और चौड़ाई
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जहांगीरनामा।