२८४ जहांगीरनामा। जाता है। जहाज जोरमें नहीं आता.। बन्दर गोगमें ठहरता है जो खंभातक अन्तर्गत और समुद्रके निकट है। वहांसे माल गिराबों (नावों) में लादकर खंभातमें लाते हैं। और जब जहाजोंको भरते हैं तो उसी तरह यहांका माल लेजाकर उनमें डालते हैं। मेरे आनसे पहले कई गिराब फरङ्गदेशक बन्दरोंसे खंभातमें आये थे और लौट जानेके विचारमें थे। १० (पौष सुदी ४) रविवार को उन्हें सजाकर मेरे देखने के लिये लाये और आज्ञा लेकर अपने जानेके स्थानको गये। सोमवारको मैं भी गिराबमें बैठकर एक कोस तक पानी पर फिरा मङ्गलको शिकारके वास्ते जाकर चौतेसे दो हरन पकड़वाये।" १३ (पौष सुदी ७) बुधको नारङ्गसर तालाबके देखनेको बाजार ' में होकर गया और ५०००) न्यौछावर किये। स्वर्गवासी श्रीमान्को समयमै इस बन्दरके कर्मचारी कल्याणराय ने उनको आज्ञासे इस नगरका पक्का कोट ईंट और चूनेका चुन- वाया है और बहुतसे व्यापारी देशान्तरसे आकर यहां बसे हैं जो सुरस्य स्थान और सुन्दर हय बनाकर सुख सम्पत्ति भोगते हैं। बाजार छोटा तो है पर खच्छ और खूब' बसा हुआ है। गुज- राती बादशाहोंके समयमें इस बन्दरको जकातो बहुत रुपये थे। अब इस राज्यमें यह हुक्म है कि चालीसमें १० से अधिक न लें। दूसरे बन्दरों में 'अशूर' को नामसे १०) में १, और ८ मा में भौ १ लेते हैं और नाना प्रकारका कष्ट व्यापारियों तथा यात्रियों को देते हैं। जद्दे में जो मक्के का बन्दर है 855 में १) लेते हैं, बरन इससे भी अधिक। इससे जान लेना चाहिये कि गुजरातके बन्दरों का तमगा अगले हाकिमोंके समयमें कितना था। भगवत कपासे मैंने अपने सब देशोंमें तमगा जो बहुत अधिक था छोड़ दिया है। मेरे राज्यसे तमगेका नामही उठ गया है।
- २॥ सैकड़ा। १०) सैकड़ा। पा १२॥ सैकड़ा।
६२५) सैंकड़ा। दरियाका महसूल।