पृष्ठ:जहाँगीरनामा.djvu/३०८

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जहांगीरनामा।

२८२ जहांगीरनामा। अपनी भूमि पृथक पृथक करली है। बीच में आने जानेके लिये तंग गलियां छोड़दी हैं। यह देश सारा रेतौला है। थोड़े चलने और भीड़ होजानसे यहां इतनी धूल उड़ती है कि आदमौका चेहरा मुशकिलसे नजर आता है। मेरे जीमें आया कि अहमदा- बादको अबसे “गर्दीबाद" कहना चाहिये न कि अहमदाबाद। २ (पौष बदी ११) शनिवारको बादशाह ३॥ कोस चलकर महो: नदौके किनारे पहुंचा। रविवारको फिर २m कोस चला और गांव वर्दलेमें ठहरा। जो मनसबदार गुजरातके सूबेमें नियत थे इस स्थान पर हाजिर हुए थे। ४ (सोमवार) को ५ कोस पर चिचमीमामै और मङ्गलवारको ५॥ कोस पर परगने मौदे में लशकरके डेरे लगे। यहां एक नील- गाय १३ मनको शिकार हुई। ६ (बुध) को छः कोसका कूच होकर परगने नौलावमें मुकाम हुआ। बादशाह कसवेमें होकर निकला और १५००, लुटाये। नौलाव। . ... पौष सुदौ १ गुरुवारको ६॥ कोस चलकर बादशाह परगने नौलावमें उतरा। गुजरातमें इससे बड़ा कोई परगना नहीं था। इसकी उपज ७ लाख रुपयेको थी बसती भी अच्छी थी। बादशाह उनमें होकर आया और एक हजार रुपये लुटाये। वह लिखता है-"मेरी इच्छा रहती है कि हर बहानेसे जगतको लाभ हो।" गुजरातमें गाडीको सवारो देखकर बादशाहका भौ जी चाहा और दो कोस तक गाड़ी में बैठे। परन्तु रेत और धूलसे बहुत कष्ट पाया । इसलिये फिर पड़ाव तक घोड़े पर गया। रास्ते में मुंक- बखांने अहमदाबादसे आकर तीस हजार एक मोती भेट किया। ८(पौष सुदौ २) शुक्रवारको बादशाह ६॥ कोस चलकर संमुद के तट पर (खंभात) में उतरा।