संवत् १६७४। २८१ जदाराज दक्षिणी। मावान (कार्ति बदौ १२) गुरुवार को. बादशाहने जदा- सनकी तीन हजारो जात और पन्द्रहत्ती सवारीका अनन्तव दिया। यह ब्राह्म ग अंबरके पास बड़ी इज्जतसे रहता था। जब शाहनवाजखाने अंबर पर चढ़ाईको तो आदमवां हबशी. जादू- राय, बाबु राय कायस्थ, और ऊदाराम आदि निजामुलमुल्कके कई सरदार अंबरको छोड़ कर शाहनवाजखांके पास चले आये थे। अंदरको हार होने पर यह लोग आदिलग्वांके कहने और अंबरको घोव में आकर बादशाही नौकरी छोड़ बैठे। अंबरने आदमहांको तो कुरानको कसम खाकर बुलाया और छलसे पकड़ कर मारडाला। बाबू राय और जदाराम : निकल कर आदिल खां. की सीमामें आये पर उसने अाने न दिया। बाबू राय कायस्थ तो उन्हीं दिनों में अपने एक मित्रके धोखसे सारा गया। जदाराम रर अंबरने सेना भेजी जिसको वह. हरा कर बादशाही सौमामें आ गया और बचन लेकर अपने बालबच्चों भाई बन्दोंको भी ले आया। शाहजहां उस को ३ हजारो जात और हजार सवार मनसब दिखानकी प्रतिज्ञाकर अपने साथ लेाया। बादशाहने ५०० सवार अधिक दिये। शाहजहांको भेट। .. १० ( कार्तिक सुदी ४ ) बृहस्पतिवार को शाहजहांने अपनी मेट बदशाहको दिखाई। जवाहिरात, जड़ाऊ चौजें और सब बहु- मुन्य द्रव्य झरोखेके चौको सजाये गये थे। हाथी और घोड़े सोने चांदौके साजोंसे सजे हुए बराबर बराबर खड़े थे। ___ बादशाह लिखता हैं कि "मैंने शाहजहांका मन प्रसन्न करनेके लिये झरोखेसे उतर कर सब चीजें व्यौरवार देखीं। उनमें एक सुन्दर लाल है जो शाहजहां लिये गोका बंदरमें २ लाखको मोल . तुज़ुक जहांगी में इस दिन १३ आंबान गलत लिखी है ३. चाहिये। -
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