२८० जहांगीरनामा। ____ बहुमूल्य सिरोपाव नादिरी सहित जिसमें रत्नों और मोति के फूल टके थे, रत्नोंका जड़ाऊ सरपेच मोतियोंके तुईको पगड़ी मोती की लड़ियोका पटका, तलवार जड़ाऊ परतलेको फूलकटार सहित. दो घोड़े जिनमेंसे एक जड़ाऊ जोनका था एक खासा हाथी दो हथ- जियां, इसीप्रकार बहुतसे सुनहरी सजावटोके जोड़े और कपड़े उसको खियोंको भी दिये। भड़कौले वत्व और रत्न जडित शस्त्र इसके प्रधान पारिषदोंको प्रदान किये। इस महोत्सव में सब मिला कर ३ लाख रूपये लगे थे । ___ महाबतखांकों काबुल। खांनदौरां बहुत बूढ़ा हो गया था इस लिये बादशाहने इसको ठढे में बदल कर महावतखांको काबुल और बंगशको सूबेदारी दी। वहां सदा पठानोंका उपद्रव रहनेसे बराबर दौड़ धूप करना पड़ती थी। ५८ हाथियोंको भेट। इब्राहीमखां फतहजंगने बिहारसे ४८ हाथी भेजे थे वह भेट मोनकले। . . बादशाह लिखना है-“नन, दिनों सोनकेले. मेरे वास्ते आये जो आज तक मैंने कभी नहीं खाये थे। लंबाई में एक उंगलके गलभग हैं कुछ मीठे और मजेदार हैं। अन्य प्रकार के केलोंसे इनको कुछ तुलना नहीं है पर बादी हैं। .मैंने दो खाये थे पंटमें बोझ मालूम हुआ। लोग तो कहते है कि ७८ तक खाना चाहिये। वास्तवमें केला खाने योग्य नहीं है, परन्तु उत्तको अनेक जातियों में से अगर कुछ खाने लायक है तो यही मोनक्षेला है। गुजरातके आम। . मुकर्रबखां गुजरातके आम २३ महर ( कार्ति बदी १ ) तक डाकचौकीमें भेजता रहा।
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