संवत् १६७४.. लेको लिाई। .... बादशाह शुला करता था कि जागी केलेले एक प्रकारको मिठाई निकलती है जिसको लाधु और गरीव लोग खाया करते हैं। वादशाइने उसको खोज को तो पता लगा कि जहांले केला निशाता है वहां एक कड़ी गांठ बंधी हुई होती है जिसका स्वाद फाटेके समान फौका होता है लोग उसे खाकर उसके खाद से सन्तुष्ट होते हैं। ..पत्र पहुंचानेवाले कबूतर । बादशाह लिखता है-“पन: पहुंचानेवाले कबूतरोंके विषयमें भी बहुत कुछ सुजा गया था। अब्बासौ खलीफाओंके समय में , बगदादी कजूतवोंको जो नामाबर कहलाते थे और जङ्गली कबूतरोंले द्योढ़े होते थे यह काम सिखाया जाता था। मैंने कबू- तरबाजोंने कहा कि इन जङ्गली कबूतरोंको सौ सिखावें। उन्होंने कई जोड़ोंको ऐसी शिक्षादौ कि जब हम उनको मांडोंने उड़ाते ये तो बरसातमें दोपहर में बुरहानपुर पहुंचते थे और जो बादल नहीं होते तो बहुधा कबूतर एक पहर और कोई कोई तो चार घड़ोहीमें पहुँच जाते थे । ____ आदिलखांको पुत्र पदवी। - ३ (भादों बदौ १०) को शाह खुर्रमको अर्जी पहुंची कि अफजलखां रायरायां और आंदिलखांके दूत आये रत्नोंके जड़ाऊ पदार्थों और . हाथियोंको भेट लाये। वसो भेट भी नहीं आई थी। आदिलखांने अच्छी सेवाको 'और अपने बचनको पूरा किया अब उसके लिये पुत्न पदवी और वह कृपा होनी चाहिये जो अबतक नहीं हुई थी। बादशाहने शाह खुरसकी बात मान कर मुंशियोंको आदिलखांका अलकाब
- सुना है कि जोधपुर और नागोर, श्री महाराजा बखतसिंह
जौ और विजयसिंहजीके हुक्मसे उपाध्या जातिके पुष्करना ब्राह्मण काबूतरोंसे यह काम लेते थे।