जहांगीरनामा। दूसरी बार.जब फिर वैसी दशा हुई तो क्रिसौने उसको पानीस निकालने का साहस नहीं किया और वह डूबकर मर गया। अब दैवकोपसे.११० वर्ष बाद उसको देहके गले हुए टुकड़े भी पानीमें मिल-गये।" . .. ... २८ (फागुन सुदी १२) को बादशाहने मांडौंको इमारतें तैयार करनेकी खुशो में अबदुलकरीमका मनसब आठ सदी जात और चारसौ सवारीका करके उसको मासूरखांकी पदवी दी। . ......... सुलतान खुर्रम और दक्षिणको व्यवस्था । जिस दिन बादशाहने मांडोंमें प्रवेश किया उसी दिन सुलतान खुर्रम भी बुरहानपुरमें जो खानदेशके सूबेका मुख्य स्थान है. पहुंचा था। कई दिन पीछे अफजलखां और रायरायांको अर्जियां पहुंची। वह खुर्रमके अजमेरसे प्रस्थान करने पर आदिलखांके प्रतिनिधिक साथ बिदाहुए थे। इन अर्जियोंमें लिखा था कि जब हमारे आनेकी खबर . आदिलखांको पहुंची तो सात कोस फरमान और निशान की अगवानीको आया। दरबारमें. सिजदा करनेको जो रौति बरती जाती है उसमें उसने जरा भी कसर न को। उसी मुलाकातमें बड़ी सेवा.. और अधीनता दिखाकर यह प्रतिज्ञा की कि जो देश बादशाही अधिकारसे निकल गये हैं उन सबको अभागे अम्बरसे छीनकर राजकीय अनुचरों के अधिकारमें कर दूंगा और यह भी स्वीकार किया कि एक उत्तम भेट बड़े ठाठसे अपने दूतोंके साथ दरबारमें भेजूंगा। यह कहकर राजदूतों को अति आदर सत्कारसे योग्य स्थानोंमें लेजाकर उतारा और उसी दिन अम्बरके पास आदमी भेजकर उचित सन्देसा उसको कहलाया। शिकारको संख्या ....... अजमेरसे मांडों पहुंचनेतक चार मासमें बादशाहने जो शिकार किया उसका व्यौरा यह हैं-............. ..
- *बादशाहका आजपत्र फरमान कहलाता था और शाहजादों
का निशान।