संवत् १६७३। शिखादी थीं। उसको शिकारको बडी लत थी। एक शिकारखाना एनवाया था जिसमें अनेक प्रकारके पशु एकन किये थे। वह बहुधा त्रियों सहित वहां जाकर शिकार खेलता था। उप्तने जैमा स्थिर किया था उसीके अनुसार अपने राज्यशासनको ३२ वर्षों में कभी किसी शत्रुके ऊपर चढ़ाई नहीं की और अपने समयको बड़ी मौज में बिताया। वैसेही और कोई शत्न भी उसके जपर चढ़कर नहीं पाया। __ लोग कहते हैं कि जब शेरखां पठान अपने समयमें नसीरुद्दीन की कानन पर पहुंचा था तो स्वयं पशुप्रतति होने पर भी उसने नसीरको बुरी करनौके वास्ते अपने साथियोंको हुक्ल दिया कि इस कबरको लकड़ियोंसे पोटो। मैंने भी उसकी कबरपर पहुंच कर कई लातें मारी और मेरे, सेवकोंने भी मेरी आज्ञासे लातें लगाई। तोभी मुझे सन्तोष न हुआ और कहा कि कबरको खोदकर उसमें जो अपवित्र हड्डियां हों उनको आगमें जलादें। फिर यह विचारा कि आग तो परमेश्वरका रूप है उसके मलिन शरीरके जलानेसे यह दिव्य पदार्थ अपवित्न हो तो बड़े खेदको बात है और ऐसा न हो कि काहीं इस जलानेसे उसके परलोकके सन्तापमें कमी हो जावे। इसलिये मैंने यह हुक्म दिया कि इसकी गलोज अस्थियों और मट्टी में मिले हुए अवयवोंको नर्मदा नदी में डालदें। यह प्रसिद्ध है कि नसोल्द्दीनको प्रकृतिमें गर्मी बहुत भगे हुई थी इसलिये वह हमेशा पानी में रहा करता था। कहते हैं कि एक बार वह उन्मत्ततासें कालियांदहके टांकेमें जो बहुत गहरा था कूद पड़ा था । अन्तःपुरके सेवकोंने बड़े परिश्रमसे उसके बाल पकड़े और बाहर निकाला। . जब कुछ सुध आई और लोगोंने कहा कि ऐसी घटना हुई थी तो बाल. पकड़कर निकाले आनका नाम सुनतेही ऐसा क्रोधित हुआ कि उस सेवकके हाथ कटवा डाले जिसने बाल पकड़े थे।
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