पृष्ठ:जहाँगीरनामा.djvu/२७

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शाहजादा सलीम।

हाकेके शिकारकी तरह घेर ले और लशकर इतना चाहिये कि जब उसके सामने पड़ जावे तो काम पूरा कर सके। दौलत- वाहोंने इसको सिवा जो और कोई सलाह देखी है तो बन्देको हुक्म होजावे कि सलाम करके अपनी जागीरमें चला जावे और वहां इस मुहिमका पूरा सामान करके राणाको जड़ उखाड़नेको रवाना हो क्योंकि अभी बन्देके सिपाही बहुत टूटे हुए हैं।

बादशाहने यह अर्जी पढ़कर अपनी बहन बखतुन्निसा बेगमको सलीमके पास भेजा और यह कहलाया कि तुम अच्छे मुहर्त्तमें बिदा हुए हो और ज्योतिषी लोग मिलनेको शुभघड़ी नजदीकके दिनों में नहीं बताते हैं इप्सलिये अभी तो तुम इलाहाबादको सिधार जाओ फिर जब चाहो खिदमतसें हाजिर होजाना।

शाह सलीम यह फरमान पहुंचतेही मथुरा होकर इलाहाबाद चला गया। वहां कुछ दिनों पीछे खुसरोकौ मा अपने बेटेके कपूतपनसे अफीम खाकर मर गई। इससे शाहको बहुतही रञ्ज हुआ बादशाहने यह सुनतेही फरमान भेजकर उसको तसल्ली दी।

बादशाहने सलीमको इलाहावाद जानेको आज्ञा दे तो दी थी मगर दिलसे उसका दूर रहना नहीं चाहता था बल्कि उसको इस दूरीसे बहुत दुःखी था। तोभी फसादी लोग उसका दिल बेजार करनेके लिये हर रोज कोई न कोई शिगूफा छोड़ा करते थे और शाहके हमेशा नशेमें रहनेका गिल्ला खैरखाहीकी लपेटमें किया करते थे। इन्हीं दिनों शाहका एक वाकानवौस और दो खिदमतगार एक दूसरेके इश्कमें फंसकर सुलतान दानियालको पनाहमें जानेके लिये आगे थे पर रस्तेते पकड़े आये। शाहने गुस्से से वाकिआ नवीसकी खाल अपने सामने खिंचवाई एक खिदमतगारको खस्सी करा डाला और दूसरेको पिटवाया। इस सजासे उसकी धाक लोगों के दिलों में बैठ गई और भागनेका रस्ता बन्द होगया।

जब खार्थी लोगोंने इस मामलेको खूब नमक मिरच लगाकर बादशाहसे अरज किया तो बादशाहने बहुतही नाराज होकर