पृष्ठ:जहाँगीरनामा.djvu/२६६

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जहांगीरनामा।

२५० जहांगीरनामा। करे और रातको अलग सोवे इस प्रकार बारह वर्ष जंगल में रहे और कन्द मूल खाकर उदर पूर्ण करे। जनेऊ पहने रहे और अग्निहोत्र भी करे, नख और दाढ़ी मूछ तथा मस्तक के बाल लेनेमें वृथा समय न खोवे। जब इस आश्रमको भी अवधि ऊपर लिखे विधानसे पूरो होजावे तो फिर अपने घरमें शवे और खौको बेटों वा भाई बन्धुओंके पास छोड़कर सतगुरुको सेवामें जावे और उसके आगे जनेऊ और जटा आदिको आगमें जलाकर कहे कि मैंने सब बंधन और जप तप अपने मनसे अलग कर दिये। ऐसा करके फिर कोई वासना चिंत्तमें न रखे सदा परमेश्वरके ध्यानमें लगा रहे और जो किमी विद्याकी भी बात करे तो वह भी वेदान्तविद्याकीही हो जिसका तात्पर्य “बाबां फुगानी" ने इस प्रकार कहा है। . . . . . . . . . ___इस घरमें एकही दीपक है कि जिसके प्रकाशसे जिधर देखता हूं उधरही एक समाज बनाया हुआ है।' और इस दशाको सर्वविनाश और उसके खामोको सर्वविनाशी कहते हैं। .. . ... ... जदरूपके मिलापके पीछे मैं हाथै पर चढ़कर उज्जैनके बीचमें से निकला और साढ़े तीन हजार रुपये दायें बायें लुटाये। फिर . संवा कोस चलकर दाऊदखेड़े में जहां लशकर पड़ा था उतरा। . ३ (फागुन बदौ १) को मुकामका दिन था। फिर जदरूपसे मिलनेकी इच्छा हुई। दोपहर पीछे उसके दर्शनंको गया और ६ धड़ी तक उसके सत्संगसे अपने चित्तको प्रसन्न करता रहा। इस दिन भी अच्छो अच्छो बातें हुई। 'संध्या समय राजभवनमें लौट आया। . . ... ... .. .. :: ... .. . . . . . . आगेको कूच। . फागुन बदौ ३ को बादशाह सवातीज कोस चलकर गांव जराव के पास बाग परानिया में पहुंचा। यह पड़ाव भी बहुत सुरग्य और हरा भरा था।" .