२४८ जहांगीरनामा। तीन गिरह है। जो सुरङ्ग उस खोहमें जाती है वह साढ़े पांच गिरह लम्बी और साढ़े तीन गिरह.चौड़ी है। उसमें एक दुबला पतला पुरुष भी बड़े परिश्रमसे प्रवेश कर सकता है और उसकी लम्बाई चौड़ाई भी इसी प्रमाणको होगी। न उसमें चटाई है न कोई घासका बिल्लौना है। वह अकेला उसो अन्धेरै, गढ़ेमें रहता है। निपट नङ्गा होकर भी जाड़े और, शीतल वायुमें कभी सिवा एक लंगोटीके और कोई कपड़ा नहीं रखता। न आग जलाता है जैसा कि मौलवी रूमने किसी एक तपस्वीका वाक्य लिखा है- .. 'हमारा बस्त्र दिनमें धूप है, सनि बिछौना और चान्दनी ओढ़ना है।' वही गति इसकी भी है। इस विश्रामस्थानके पासही पानी बहता है वह उसमें नित्य दोबार जाकर नहाता है और एकबार बस्तीमें आकर सात ब्राह्मणों के घरोंमेंसे जो उसने अङ्गीकार कर रखे हैं तीन घरोंसे पांच ग्रास भोजनके (जो उन्होंने अपने वास्ते बनाया हो) हथेलीपर लेकर बिना चबाये और स्वाद लियेही निगल जाता है। यह ब्राह्मण भी एहस्थ हैं और उसके भक्त हैं पर इसके साथ यह कई नियम भी हैं कि उन तीन घरों में शोक और सूतक न लगा हो न कोई स्त्री रजस्वला हुई हो। उसको यही जीवनवृत्ति है। वह लोगोसे नहीं मिलना चाहता है परन्तु बहुत बिख्यात होजानेसे लोग आपही. उसके दर्शनको आते हैं। बुद्दिसे शून्य नहीं है वेदान्तविद्यामें निपुण है। "मैं छः घड़ी तक उसके पामारहा उसने अच्छी अच्छी बातें कहीं जिनका मुझ पर बड़ा प्रभाव हुआ और उप्तको भी मेरा मिलना अच्छा लगा। मेरे पिता भी जबकि वह आसेग्गढ़ और खानदेश जीतकर आगरेको लौटे थे. उससे इसी जगह पर मिले थे और उसे सदा याद किया करते थे।" . ब्राह्मणों को वर्णव्यवस्था। ... हिन्दुस्थानके विद्वानोंने हिन्दुओं में उत्तम वर्ण वाणके जीवन के चार आश्रम नियतं किये हैं। ब्राह्मणोंके घर में जो, बालक जन्म
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जहांगीरनामा।