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संवत् १६७३।

पान पड़ोजने कुछ अंची है। दासको बैलें एका वर्षमें दोबाद पाली -दा बार जौनका संज्ञान्ति लगनेक समय और दूसरे सिंह संक्रान्तिक पार। परन्तु पहजो रतुया अंगूर अधिक मोठा है। मालवेको जमा चौबीस करोड़ सात लाख दामकी है और शान पड़ने पर नौ हजार तीन सौ काई सवार चार लाख सत्तर हजार तीन सौ पैदल और एक सौ हाथी इस सूबेसे निकलते हैं।

८ (माघ वदी ५) को ४ कोस अढ़ाई पान रास्ता काटवार बादशाह गांव खैराबादके पास उतरा। फिर तीन कोसतका शिकार खेलता हुआ गांव सिधारेमें पहुंचा और माध बदौ ८ को वहीं रहा।

१२ (नाव बदौ ८) को गांव बछयाडौमें ठहरा। यहां राना अमरसिंहक भेजे हुए कई टोकरे शंजीर पहुंचे। बादशाह लिखता है-“सच तो यह है कि अच्छा मेवा है। अबतक मैंने हिन्दुख्यानके अंजीर ऐसे सरस नहीं देखे थे परन्तु थोड़े खाने चाहिये बहुत खानेमें हानि है।"

१४ (माघ वदी ११) को कूच हुआ। डेढ़पाव चार कोस चलकर गांव बनवलीमें पड़ाव पड़ा। राजाने जो उसप्रान्तके बड़े जमीन्दारों मेंसे था दो हाथी बादशाहके नजरको भेजे थे वह यहां देखे गये और यहीं हिरातके खरबूजे भी आये। पचास ऊंट भरकर खाज- पालमने भी मेजे थे। पिछले वर्षों में कभी पूतने अधिक खरबूजे नहीं आये थे। एक थालमें कई प्रकारके वे लगकार ऑये जैसे-

हिरात. बदहशां और काबुलके खरबूजे।"

समरकन्द और बदखशांके अंगूर।

समरकन्द, बदहाशा, कशमीर, काबुल और जलालाबादके सेब।

'अनन्नास जो फरक देशके टापुओंका मेवा है और आगरेमें उनकी पौद लगाई गई थी। हरसाल कई हजार वहाक सरकारी बागों में फलता है।