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संवत १६७३!

राजाको हाजिरी।

पौष बदी ५ को मोतमिदखांको अर्जी आई जिसमें लिखा था कि जब शाह खुर्रम राणाको विलायतके पास पहुंचा और उधरका कुछ उद्योग नहीं था तोभी राणा बादशाही सेनाको धाकसे उदय- पुरमें आकर पूरा पूरा आदाब बजा लाया।

शाहखुमने भी उसका पूरा सत्कार किया। खिलअत, चारकुब्द नड़ाज तन्नवार, जड़ाऊ खपवा, तुरकी और इराकी घोड़े तथा हाथी देकर बड़े मानते बिदा किया। उसके बेटे और पास वालों को भी सिरोपाव दिये । राणाने जो पांच हाथी २४ वोड़े जवाहिर और जड़ाऊ पदार्थ एक थालमें भरकर भेट किये थे उसमेंसे केवल तीन घोड़े लेकर बाकी उसीको देदिये और यह बात ठहरी कि उसका बेटा पन्द्रह सौ सवारोंसे इस दिग्विजयमें साथ रहे।

राजा महासिंहले बेटे।

१० (पौष बदौ ८) को राजा महासिंहके बेटोंने अपने वतनसे आकर रणथन्भोरके पास बादशाहको मुजरा किया। तीन हाथी और ८ घोड़े भेट किये। बादशाहने उनको यथायोग्य मनसब दिये।

बादशाह रणथम्भोरमें।

जब बादशाह रणथम्भोरमें पहुंचा तो उस किलेके बहुतसे कैदी छुड़वा दिये। यहां दो दिन डेरे रहे। बादशाह रोज शिकारको जाता था ३८ मुर्गाबियां और जलकव्वे शिकार हुए।

१२ (पौष बदौं १०) को चार कोस चलकर गांव कोयलेमें सवारी ठहरौ १४ (१२) को सवा तीन कोस पर गांव एकटोरमें सुकाम हुआ। यहांका तालाब जिस पर बादशाहो दौलतखाना खड़ा हुआ था बादशाहके पसन्द आगया। इससे दो दिन मुकाम रहा। रणथम्भोर महाबतखांको जागीरमें था उसका बेटा बहरीवर किले में रहता था। उसने आकर दो हाथी भेट किये दोनोंही खासके हाथियों में रखे गये।