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संवत् १६७३।

दोराई।

दोराई में सात दिन डेरा रहा। २८ (कार्तिक सुदी १२) को दोराई में कूच होकर सवा दो कोसपर गांव दासावलीमें डेरा हुआ।

३ आजर (अगहन बदी १) को फिर सवा दो कोस पर गांव मावलमें मुकाम हुआ।

राममर।

४ आजर (अगहन बदी २) को डेढ़ कोस चलकर बादशाह रामसर में आठ दिन रहा। उक्त गांव नूरजहांबेगमको जागीरमें था। छठे दिन कुंवर कर्णका बेटा जगतसिंह हाथी और घोड़ा पाकर अपने परको बिदा हुआ । केशव मारूको भी घोड़ा इनायत हआ।

इन्ही दिनों में राजा श्यामसिंहके मरनेको खवर सुनी गई जो बंगशक लशकरमें तैनात था।

"आतिथ्यसत्कार।

गुरुवारको नूरजहां बेगमने बादशाहका आतिथ्यसत्कार किया। रत्नों, जड़ाऊ आभूषणों, दिव्य वस्त्रोंसे सिले हुए जोड़ों और नाना प्रकारके पदार्थोसे सजी हुई भेंट दी। रातको वहांके विशाल तालाब पर रोशनी हुई बहुत अच्छौ मजलिस जुड़ी थी। बादशाह ने अमीरोंको बुलाकर प्याले दिये।

बादशाहके साथ खुशकोमें भी कई नावें रहा करती थीं जिनको मल्लाह लोग गाड़ियों पर लादे चलते थे। शुक्रवारको बादशाह उन्हीं नावों पर बैठकर रामसरके तालाबमें मछलियां पकड़ने गया और एकही जालमें २०८ मछलियां पकड़ लाया। उनमें आधी रोह मछलियां थीं। वह सब रातको अपने सामने नौकरोंको बांट दीं।

१३ (अगहनं बदौ ११) रामसरसे कूच होकर चार कोस पर गांव बलोदेमें और १६ (अगहन बदौ १४) को सवा तीन कोस चल . कर गांव निहालमें डेरे हुए। १८ (अगहन सुदी १) को सवादो कोस पर गाँव जोंसेमें मुकाम हुआ। वहां बादशाहने ईरानके दूतको एक हाथो दिया।