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जहांगीरनामा।

(बग्यौ) में बैठकर अजमेरसे प्रस्थान किया। अमौरीको भी रथों में बैठकर साथ आनेका हुक्म दिया।'

पौने दो कोस चलकर शामको गांव दोराईमें मुकाम हुआ।

बादशाह लिखता है-"हिन्दुस्थानियोंने ऐसा स्थिर कर रखा

है कि जो राजा और बादशाह पूर्वकी ओर जावें तो दन्तीले हाधी पर सवार हों। पश्चिमको जावें तो इकरंगे घोड़े पर बैठे, उत्तर को जावें तो पालकी या सिंहासन पर और इक्षिणको जावें तो रथ पर सवारी करें।

अजमेर।

बादशाह पांच दिन कम तीन वर्ष अजमेर में रहा। अजमेरके वास्ते लिखा है कि "यहां खाजा मुईनुद्दीनको पवित्र : समाधि है यह दूसरी इकलोममें गिना जाता है। हवा यहांको समभावको है। पूर्व में आगरा, उत्तरमें दिल्लौके परगने दक्षिण में गुजरात और पश्चिममें मुलतान तथा देपालपुर है। यह सूबा तमाम रेतीला है। खेती बरसातके पानीसे होती है। जाड़ा समभावका और गरमौ आगरसे कम है। ८६००० सवार और ३०४००० पैदल राजपूत लड़ाईके समय इस खूबसे निकलते हैं। इस बस्ती में दो बड़े तालाब हैं, एक बौसल ताल और, दूसरा आनासागर । . बौसल ताल सूखा है और उसका बान्ध टूट गया है। मैंने बांधनेका हुक्म दिया है आनासागर जिस पर इतने दिनों तक रहना हुआ था हमेशा पानौसे भरा रहा, यह डेढ़ कोच और पांच डोरीका है।

अजमेर ठहरनेके दिनों में 2 बार खाजाजीको जियारतको गया . और १५ बार पुष्कर देखने । ३८ बार नूरचममें जाना हुआ । ५० नार शिकारको गया।. १५ सिंह १. चौता १ स्याहगोश ५३ नौल गायें ३३ गेंडे ८० हरन ३४० मुरगाबों और ८० सूअर शिकार हुए”..


  • दुनियाको बस्तीका सातवां टुकड़ा।