दरगाहमें आगये थे। बादशाहने एतमादुद्दौलाको प्रार्थनासे राजा भानयो कांगड़ा जीतके वास्ते भेजा और उन सब सहायकोंको उनसे लाय कर दिया। सबको यथायोग्य हाथी, घोड़े, सिरोपाव और रुपये दिये।
अवटुलइखां।
बादशाहने खुर्रमको प्रार्थनासे अबदुल्लहखांको फिर अगला मनसब देकर शाहजादेके साथ दक्षिण जानेवाली सेनामें भरती कर दिया ।
खुसरो।
खुसरो अनौराय सिंहदलनंके पहरे में था उसे ४ आवान (कार्तिक बदौ २) को बादशाहने किसी कारण विशेषसे आसिफण्डा को सौंपा और एक खासेका शाल भी दिया।
ईरानका दूत।
१ आबान १७ शव्वाल (द्वितीय आखिन सुदी ५) को ईरानका दूत मुहम्मद रजा अपने बादशाहका प्रेमपत्र घोड़े और दूसरे पदार्थ लेकर आया । बादशाहने उसको जड़ाऊ मुकुट और सिरो- पाव प्रदान किया। उस पत्र में ईरानके शाहने बहुत कुछ प्रीति और एकता दरसाई थी इसलिये बादशाहने उसको अपनी 'तुजुक' में लिख लिया। उसके सुललित पदोंमसे एक पद यह भी था- इम तुम ऐसे एक होगये हैं कि मुझे यह सुध नहीं रही है कि तुम हो सो मैं इंया मैं हंसो तुम हो-दोनोमें कुछ भेद भाव . इस लोकमें क्या परलोकमें भी नहीं रहा है।
खुर्रमका दक्षिण जाना ।
१८ शव्वाल २० आंबान (कार्तिक बदौ ६) रविवारकों बाबा खुरमका पेशखौमा अजमेरसे दक्षिण भेजनेके वास्ते बाहर निकाला गया।
(कार्तिकं बंदी ७) सोमवारको ३ घड़ी दिन चढ़ें बादशाहका दौलतखाना (कपड़ीका राजभवन) भी उसी दिशाको रवाने हुआ।