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संवत् १६७३।

जागीर देनेका हुक्म दीवानीको दिया गया। दियानलखांका मन- सब पिछली बदचलनियोंसे घट गया था। एतमादुद्दौलाके कहने से पूरा होगया।

रावल कल्याण जैसलमेरो।

रावल कल्याणका मनसब दो हजारी जात और दो हजार सवारों का हुआ। उसका वेतन भी उसीके देशमें लगाया गया। उसको बिदाका मुहर्त भी उसी दिन था इसलिये हाथी, घोड़ा, जड़ाज खपवा, परम नरम खासा और खिलअत उसको मिला और राजी खुशी अपने देशको गया।

मुकर्रबखां।

३१ (प्रथम आखिनसुदी १३) को मुकर्रबखां पांच हजारी जात पांच हजार सवारका मनसब, खासा खिलात, नादरी और मोती के तुकमें सहित एक खासेके हाथी और खासेका घोड़ा · पाकर आनन्दपूर्वक अहमदाबादको बिदा हुआ।

जगतसिंह।

हितोय आखिन बदौ ८ को कुंवर कर्णका बेटा जगतसिंह खदेशस आया।

"कुतुबुलमुल्कको भेंट।

११ महर (द्वितीय आश्विन मुदी ३) को गोलकुंडके शाह कुतुबुलमुल्कको भेंट बादशाहके सामने पेश हुई।

मिरजा अलौवेगं अकबरशाही।

मिरजा अलीबेग अपनी जागोरसे जो अवधौ धौ १६ (द्वितीय आश्विन बी १३) को आया उसने एक हाथो जिसे वह शाही आज्ञानुसार वहांके किसी जागीरदारसे लाया था भेंट किया। उसकी उमर ७५ वर्षकी थी और अच्छे काम करनेसे चार हजारी मनसबको पहुंचा था। २२ (द्वितीय आखिन सुंदी ४) शुक्रवार को रातको वह खाजा साहिबकी जियारतको गया था। वहीं मर गया और वहीं बादशाहके हुक्मसे गाड़ा गया।