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जहांगीरनामा।

दूसरे लोगोंके शोकका तो कहनाहौ क्या है जिनके प्राण श्रीमान को पवित्रामासे बंधे हुए हैं। दो दिन तक - किसीका मुजरा न हुआ। जिन घरमें राजकुमारीका उठना बैठना था उसके आगे दीवार उठा देनेका हुक्म हुआ जिससे दिखाई न दे। तीसरे दिन बादशाह बड़ो व्याकुलतासे शाहजादेके घर पधारे। वहां सब बन्द मुजरा करके निहाल हुए। रास्ते में हजरतने अपनेको बहुत रोका तोमो आंसू आँखोंसे चले आते थे. और बहुत दिनों तक यही दशा रहो कि जब कोई दुः खसूचक अक्षर सुनने में आता. तो अधौर होज़ाते थे।

शाहजादेके घर कई दिन रहे। फिर सोमवार (६) तौर* को आसिफखांके घर पधारे। वहांसे लौटकर नरचशीमें गये। दो तीन दिन वहां दिल बहलाया। परन्तु जबतक अजमेरमें डेरे रहे अपनेको सम्हाल न सके। जब कभी राजकुमारोके नामको भनक कानमें पड़ती तो सहसा आंसू टपकने लगते थे और राज- अतोंका कलेजा टुकड़े टुकड़े होजाता था। · जब दक्षिणको कूच हुआ तो कुछ शान्ति हुई।

राय पृथ्वीचन्द।

इस तारीख में राय मनोहरके बेटे पृथ्वीचन्दको राय पदवी, पांच सदी जात चार सौ. सवोरकां मनसब और . जागोर बैतनमें मिली।


  • मूलमें तारीखका अङ्ख नहीं लिखा है पर सोमवार ६ तौरको

था. इसलिये हमने कोष्ट में ६ बना दिया है। वह लड़को आसिफखांको दौहित्रौ और एतमादुद्दौलाको परदौहित्री थी।

  • मूलमें तारीखका अङ्क नहीं है यहांसे तु० जहांगीरी में फिर

बादशाहका लेख है।