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संवत् १६७३ ।

राजा किशनदास गया था आकर मुजरा किया। एक हजार मोहरें और एक हजार रुपये नजर किये। उपका बड़ा आई राव भौम था। जब वह मरा तो उसका लड़का दो महीने का वालक या। वह भी ज्यादा न जिया। बादशाहने पिछली पीढ़ियोंके 5वंवसे इसको बुलाकर राजतिलक और रावलका खिताब दिया।

राजामान।

बादशाहको खबर पहुंचौ कि मुरतिज्ञाखांके मरने पर राजा मानने कांगड़े के किलेवालोंको ढारस देकर वहांके राजकुमारको जो २८ वर्षका था दरबारमें लेजाने की बात ठहराई है।

बादशाहने इम उत्साहके बदले में उसका मनसब जो हजारी जात और आठ सौ सवारोंका था बढ़ाकर डेढ़ हजारो जात और एक हजार सवारोंका कर दिया।

पोतीको मृत्यु ।

बादशाह लिखता है कि इसपा तारीखको एक देवघटना हुई। उसके लिखनेको मैंने बहुत चाहा परन्तु हाथ और हृदयने साथ नहीं दिया। जब लेखनी पकड़ता था औरही दशा होजाती थी। विवश होकर एतमादुद्दौलाको लिखनेका हुक्म दिया।

एतमादुद्दौलाका लेख।

बूढ़ा भल्ल गुलाम एतमादुद्दौला हुक्मसे इस तेजमय गन्धमें लिखता है कि ११ तारीख खुरदाद (जेठ सुदी १४) को श्रीमान् शाह खुर्रमको श्रीमती राजकुमारीको जिसे बादशाह बहुत प्यार करते थे बुखार चढ़ा। तीन दिन पौछे छाले निकल आये और २६ बुधवार २८ जमादिउलअव्वल (आश्विन सुदी १) को उसका प्राणपक्षी पंचभूतके पी रेसे खर्गको उड़ गया। इसलिये हुका हुआ कि अब चारशंबे (बुधवार) को कमशंबा लिखा करें। मैं क्या लिखू कि इस हृदयदाहक दुर्घटनासे हजरतको कितना दुःख हुआ।


ना तारीखका अङ्ख नहीं दिया है।