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संवत् १६७३।

१८ (बैशालु नदी ६) को बादशाह आप्तिफखांके घर गया जो बोलावखानी एक कोज था। प्राप्तिमा जाने प्राधे रास्ते में सादे और जरी मखमल विछा दिये थे जिनका सूज्य दस हजार रुपये बाद- शाहको सुनाया गया। बादशाह उस दिन प्राधीरात तक वेगमों सहित वहां रहा। उसने जो भेंट सजाई थी वह सब अच्छी तरह बादशाहजे देखो। एक लाख चौदह हजार रूपयेको जवाहिर जड़ाज पदाय, कपड़े, एक जंट गौर चार घोड़े पसन्द करके लिये।

मेत संक्रान्ति ।

१८ (वैशाख वदी ७) को सूर्यको मेख संक्रान्तिका उत्सव था। हौलतखान बड़ी आवो मगलिक जुड़ी। बादशाह मुहर्तके अनु- सार अढ़ाई बड़ी पिले दिनले सिंहासन पर बैठा। उसी समय बाबा दर्रमाणे ८००००) का एक लाल भेट किया। बादशाहने औ उसका सनान बढ़ाकर बीस हजारी जात और दस हजार सवारोंका कार दिया।

इसी दिन बादशाहके मौन जन्मदिवप्तका तुलादानषा हुआ।

एतमादुद्दौलाको पदहद्धि।

उलो दिन बादशाहने एतमादुद्दौलाका अनसन सात हजारी नात और पांच हजार सवारं का करके उसको तुमन और तौग भी इनायत किया और यह हुक्म दिया कि खुरमक नकारके पीछे उसका नकारा बजे।

पोता।

२१ (बैशाख बदी ) को महतर फाजिल रकाबदारके बेटे सुकोमकी बेटौसे खुसरोके घर पुन जन्मा।

अलहदाद पठानका अधीन होना।

अलहदाद पठान अहहादसे माटदार दरबार में आया। बाद-


  • चंडूपञ्चाङ्गमें यह मेख संक्रान्ति नैशाख बदौ ६ को लिखी है।

पा यह तुलादान १७ रबीउल शब्बल अर्थात् बैशाख बदौ ३ को होना चाहिये था सप्तमीको सुइत हुआ होगा।