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संवत१९७३

हाफिज नादअली कलावत पुराने सेवकों में से था इसलिये बाद- शाहने हुम्ल दिया कि सोमवारको जो सेट आवे वह सब इसको दोजावे।

चौथे दिन खानजहांको भेट आगरेसे आई उनमें हीरे मोती एक हागे और कुछ जड़ाज पदार्थ पचास हजार रुपयेके थे। पांचवें दिन कंवर कर्णने अपने देशसे आकर मुजरा किया। एक सौ मुहरें और एक हजार रुपये नजर तथा एक हाथो सोंज सहित और चार घोड़े भेट किये।

सातवें दिन आमिफखांके मनसब पर जो चार हजारी जात और दो हजार सवारका था हजारी जात और दो हजार सवार और बढ़ाये गये। उसको नकारा और झण्डा ओ इनायत हुआ। इसौ दिन भोर जमालुद्दीनको भेंट हुई वह सवही बादशाहको पसन्द आगई। उसमें एक खञ्जरको जड़ाऊ मूठ पचास हजार रुपये की थी जिसमें दौर मोतियोंके सिवा पोलेरङ्गका एक बड़ा अपूर्व याकूल जड़ा हुआ था वह मुर्गी के अंडके बराबर.था। बादशाहने उसके मनसब पर एक हजार सवार बढ़ा दिये जो पांचहजारो जात और साढ़े तीन हजार सवारोंका होगया।

नवें दिन अबुल हसनको भेटमें चालीस हजार रुपयेवो जवाहिर जड़ाज़ चीजें और उत्तम कपड़े लिये गये।

तातारखां बकावलवेगी (बाबरचौखानेके दारोगा) को भेट हुई उसमें लाल, याकूत, एक जड़ाऊ तखती और कपड़े थे।

दसवें दिन दक्षिणसे तीन हाथी राजा महासिंहके और लाहोर से एक सौ कई जरीके थान मुरतिजाखांके भेजे हुए पहुंचे।

दियानतखाने भी दो मोतियोंको माला. दो लाल छः बड़ मोती और सोनेका थाल भेट किया। सब २८ हजार रुपये थे।

११ फरवरदौन (चैत्र सुदी १२) गुरुवारको पिछले दिनसे बाद-


    • यात एक प्रकारका रन है जिसका रङ्ग पोला नोला और

सफेद होता है।