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जहांगीरनामा।

भी जाते थे परन्तु रास्ता विकट था जंगल बहुत · पड़ते थे। इस लिये दो तौन होरोंके लेने पर सन्तोष करके चले आते थे। जब यह सूबा जाफरखांसे उतरकर इब्राहौसखांको मिला तो मैंने बिदा करते समय उससे कहा कि उस विलायत पर जाकर उसको उस अधम पुरुषसे छीन ले। इब्राहीमखां बिहार में पहुँचतही सेना सजकर उस जमीन्दारके ऊपर गया और उसने पूर्ववत् अपने आदमी भेजकर कई होरों और हाथियोंके देनेको प्रार्थना की । पर खानने खौकार न करके शीघ्रतासे उसके देशमें प्रवेश किया और उसको सेनाके तय्यार होनेसे पहलेही धावा किया। उसको समा- चार पहुँचते पंहुंचते उछ घाटीमें जा पहुंचा जहां उसका घर था। घाटीको घेरकर उसको खोजमें आदमों भेजे वह एक गुफामें छिपा हुआ मिला और अपनी सगी तथा सौतेली दो माता और एक भाईके साथ पकड़ा गया। जो होर उसके पास थे वह सब लेलिये गये। २३ हाथो हथिनी भी हाथ आये।

इस सेवाके बदले में इब्राहीमखांका मनसब बढ़कर चार हजारी जात और सवारोंका होगया और उसको फतहजंगकी पदवी मिली। जो लोग साथ थे उनको भी वद्धि हुई। अब वह विला- यत राज पारिषदोंके अधीन है। लोग उस नदी में काम करते हैं। जितने होर निकलते हैं दरगाह में आते हैं। इन्हीं दिनों में एक बड़ा होरा पचास हजार रुपयेका मिला था। जब कुछ और काम होगा तो आशा है कि अच्छे अच्छे हौर मेरे निजके रत्न भाण्डारमें आने लगेंगे।

ग्यारहवां नौरोज।

१ रबीउलअब्बल (चैत्र सुदी ३) रविवार संवत् १६७३ को सूर्य मौनसे मेख राशिमें पाया। दीवानखाने खासोामका आंगन बहुमूल्य डरों तम्बुओं और फरंगी .परदों तथा जरीके दिव्य बस्त्रोंसे सजाया गया था बादशाह वहीं राज्यसिंहासन पर बैठा। शाहजादों अमीरों मन्त्रियों और सब नौकरोंने झुककर सलाम किया और बधाई दी।