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संवत्१६७२।

किया और उसको हराकर गोल अर्थात् बीचकी सेनाको जा दबाया। वहां दो घड़ी तक ऐसे वमासानका युद्ध हुआ कि देखने बाले दङ्ग होगये। लाशोंके ढेर लग गये अंबर सम्मुख ठहर न सका भागा। जो अन्धेरी रात उसके बचानेको बीच में न आजाती तो वह और उसके साथियोंमे से कोई न बचता। बादशाही सवार दोतीन कोसतक तो पीछे गये फिर घोड़ोंके थक जानेसे आगे न जा सके। शत्रुका पूरा तोपखाना तीनसौ ऊंटबानोंसे भरे हुए जंगी हाथी ताजी घोड़े और बहुतसे हथियार हाथ आये । बहुतसे सरदार पकड़े गये। जो कटकर या घायल होकर पड़े थे उनकी कुछ गिनती न थी। फिर बादशाही सेना करकी पर गई जहां शत्रुकी छावनी थी। परन्तु वहां किसीको न देखा क्योंकि सब लोग खबर पाकर भाग गये थे। सेना कई दिन करकीमें रही और शत्रुओंके घर जलाकर रोहनखंडकी घाटीसे उतर आई।

बादशाहने इस सेवाके बदले में अपने नौकरोंके मनसब बढ़ाये।

खोखरा और हीरेकी खान।

तीसरी बधाई बादशाहको यह पहुंची कि खोखरेकी विलायत और हीरेकी खान इब्राहीमखांके परिश्रमसे फतह हुई। बादशाह लिखता है -- “यह विलायत तथा खान बिहार और पटनेके अर्न्तगत है। वहां एक नदी बहती है। जब उसका पानी कम होता है तो उसमें खडडे और गढ़े निकल आते हैं उनमेंसे जिसके नीचे हीरे होते हैं उस पर बहुतसे झींगें उड़ा करते हैं। इस पहचानसे वह लोग जो इस कामको जानते हैं नदी तक उन गढ़ीके किनारों में पत्थर चुन देते हैं और फिर उनको कुदाल फावड़ोंसे दो डेढ़ गज गहरा खोदते हैं और वहां जो रेत और कंकर निकलते हैं उसमें ढूंढकर छोटे बड़े हीरे निकालते हैं। कभी कभी ऐसे हीरे भी निकलते हैं जिसका मूल्य एक लाख रुपये तक होता है।

यह भूमि और खान दुर्जनसाल नामक एक हिन्दूके अधिकार में थी। बिहारके हाकिम उसके ऊपर बहुत सेना भेजते थे और आय

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