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जहांगीरनामा।

राजा सूरजसिंह ।

१८ (कार्तिक बदौ ६) को राजा सूरजसिंहने जो अपने पुत्र गजसिंह सहित घरको गया था वापस आकर मुजरा किया। सो मोहर और एक हजार रुपये नजर किये।


आदिलखखांके वकील सैयद कबीरको एक नूरजहानी मोहर पांचसौ तोले सोनेको इनायत हुई।

२३ (कार्तिक बदी ) को नव्वे हाथी कासिमखांके भेजे हुए पहुंचे जो उसने कोच और मगके देशोंको जीतकर तथा उड़ौसेके जमींदारोंसे लेकर भेजे थे।

बीजापुर।

२६ (कार्तिक बदौ १२) को सैयद कबीर हाथी घोड़ा और सिरोपाव पाकर बीजापुरको बिदा हुआ यह आदिलखांका भेजा हुआ दक्षिणके दुनियादारों के अपराध क्षमा कराने और किले अहमदनगर और दूसरे बादशाही मुल्कोंको छुड़ा देनेको प्रतिज्ञा करनेको आया था जो बादशाही अधिकारसे निकल गये थे।

रामदास कछवाहा ।

उसी दिन राजा राजसिंह कछवाहा (जो दक्षिणमें मारा गया था) के बेटे रामदासको बादशाहने एक हजारी जात और चार हजार सवारका मनसब दिया।

राजा मान ।

४ आबान (कार्तिक सुदी ५) को राजा मान .जो गवालियरके किले में कैद था मुरतिजाखांको जमानत पर छोड़ा गया। वह अपने मनसब पर बहाल होकर मुरतिजाखांके पास कांगड़ेको लड़ाई में भेजा गया।

राजा सूरजसिंह।

१६ (अगहन बदौ ३) को राजा सूरजसिंह भी दक्षिणकी मुहिम पर भेजा गया। उसका मनसब तीनसौ सवारके बढ़नेसे पांच


  • दक्षिणके बादशाहोंको दिल्लीके बादशाह'दुनियादार कहते थे ।