पृष्ठ:जहाँगीरनामा.djvu/२२१

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२०५
संवत् १६७२।

का पता लगा। राजाने अपने भाई अतीजे और प्रिय पारिषदों को हारा देखा। बाकी लोग बिखरकर अपनी अपनी जगह पर चले गये थे।

यह खबर पहोकरमें मेरे पास पहुंची तो मैंने हुदा दिया कि जो लोग मारे गये हैं उनको उनकी रीतिके अनुसार जला देवं और इस झगड़ेका पूरा पूरा निर्णय करें। पीछे प्रगट हुआ कि बात वही थी जो लिखी गई।

राय चूरजसिंह।

२०* (जेठ सदी १४) को राय सूरजसिंह दक्षिणको बिदा हुआ। बादशाहने उसको कानोंके वास्ते एक जोड़ी मोतियोंको और एक परम नरम खासा इनायत किया। खानजहांके वास्ते भी एक जोड़ी सोतियोंको उसके हाथ भेजी।

कर्णको बिदाई।

२५ (आषाढ़ बदी ४।५) को कर्ण अपनी जागीरको विदा हुआ। बादशाहने शाही हाथी घोड़े पचास हजार रुपयेको मोतियोंको कण्ठो और दो हजार रुपयेको जड़ाऊ कटार उसको विदाई में दी। सुजरा करनेके दिन बिदा होने तक जो अछ नकद माल जवाहिर और जड़ाऊ पदार्थ बादशाहने उसको दिवे घे वह सब इस प्रकार थे

रुपये २ लाख, हाथो ५ और घोड़े ११०।

खुर्रमने जो कुछ दिया था वह इससे अलग था।

बादशाहने मुबारकखां सजावलको. हाथी घोड़ा देकर उसको साथ किया और कुछ बातें राणाको भी कहला भेजी।

राजा सूरजसिंहको छुट्टी।

राजा सूरजसिंहने भी घरजानेके वास्ते दो महीनेकी छुट्टी ली। शाह ईरानका अपने बेटेको मारना।

बादशाहको यह खबर सुनकर बड़ा विस्मय हुआ कि ईरानके


  • असल पोथो में लेखकके दोषसे ८ लिखी है।

[१८ ]