पृष्ठ:जहाँगीरनामा.djvu/२१९

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२०३
संवत् १६७२।

१ खुरदाद (जेठ बदी १०) को ४०, जेठ बदी ११ को ४१ और १२ को २० कुल १०१ घोड़े तीन दिनमें कर्णको फिर मिले।

बादशाहने फौजसिँगार हाथोके बदले में दस हजार रुपयेको कीमतका एक शाही हाथी राजा सूरजसिंहको दिया।

(जेठ बदी १४) को १० चौरे १० कबा और १० कमरबन्द कर्णको इनायत हुए। जेठ सुदी १० को एक और हाथी उसको मिला।

करमसेनका मनसब दो सदी जात और पचास सवारोंको वृद्धि से एक हजारी जात और तीनसौ सवारीका होगया।

१२ (जेठ सुदी ६) को कलगी जो दो हजार रुपये की थी कर्ण को इनायत हुई।

१४ (जेठ सुदी ८) को बादशाहने सरवुलन्दरायको खिलअत देकर दक्षिणको बिदा किया।

गोयन्दास और किशनसिंहका मारा जाना।

बादशाह लिखता है-“१५ (जेठ सुदी ८) शुक्रवारको रातको एक अजीब बात बुई। मैं उस रात देवसंयोगसे पुहोकर में था। राजा सुरजसिंहका सगा भाई किशनसिंह राजाके वकील गोयन्दास पर · अपने जवान भतीजे. गोपालदासके मारे जानेसे बहुत नाराज था। गोपालदास मुहत पहले गोय- न्दासके हाथसे मारा गया था। इस झगड़ेको कथा बहुत लम्बी है। किशनसिंहको यह अरोता था कि गोणलदास राजाका भौ भतीजा लगता है इस लिये वह गोयन्दासको उसके बैरमें मार डालेगा। राजा गोयन्दासको कार्यकुशलता और योग्यतासे भतीजेका बदला लेनेमें टालटूल करता था । किशनसिंहने जब राजाकी ओर से आनाकानी देखो तो अपने दिल में यह ठानी कि मैंही भतीजेका बदला लूंगा और इस खूनको योही नहीं जाने दूंगा। यह बिचार बहुत दिनोंसे उसके दिलमें था निदान इस रानमें अपने भाइयों सहायकों और नौकरोंको एकत्र करके कहा कि आज गोयन्दासको ..