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जहांगीरनामा।

बातें मित्रताके लाभ और शत्रुताको हानिकी कहीं और इस समय भी उसको बहुत कुछ माल दिया। उसको बादशाह, शाहजादी और अमीरोंकी सरकारोंसे जिन्होंने आज्ञानुसार उसकी मनुहार की थीं सब मिलाकर एक लाख रुपया मिला था।

१४ (बैशाख सुदी ६) को खरपके मनसब और इनामका निरू- पण हुआ। उसका मनसब १२ हजारी जात, और छः हजार सवार का और परवेजका :१५ हजारी जात और आठ हजार सवारका था। बादशाहने खुर्गमका अनसब भी परवेजके बराबर कर दिया। उस पर भी एक सवाई इनामको बढ़ाई। पंछीगज नामक खासेका हाथी उसको दिया जो सामान सहित बारह हजार रुपयेका था।

१७ (बैशाख सुदी ८) को राजा खरंजसिंहका मनसब जो चार हजारो जात और तीन हजार सवारोका था एक हजारौ जातके बढ़नेप्से पांच हजारो होगया।

खानाजसका बेटा अबदुल्लह जो रणथम्भोरके किले में कैद था खानआजमको प्रार्थनासे बुलाया गया और पांवको वेडी. कटवाकर बापके घर भेजा गया।

२४ (जेठ बदी १२) को राजा सूरजसिंहने फिर एक हाथी फौज सिंगार नामक बादशाहके भेट किया। वह शाही हाथियों में बंध गया परन्तु अगले हाथोके समान न था। मूल्य बीस हजार कूता गया।

कजलवाशखां जिसकी नौकरी गुजरातमें थी सुबेदार की आज्ञा बिनाही वह दरबारमें आगया। बादशाहने अहदी को हुक्म दिया कि उसको पकड़कर फिर सूबेदारके पास पहुंचादे।

२८ (जेठ बदो ७) को बादशाहने एक लाख रुपये खानाजम को दिलाये और डासना तथा कासनाके परमने जिनकी जमा पांच हजारी मनसबके बराबर थी उसको जागीरमें लगा दिये।

३१ (जेठ बदौ ८) को बीस घोड़े परम नरम खासेको कबा बारह हरन और दस ताजी कुत्ते बादशाहने कर्णको दिये।