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जहांगीरनामा।

खर्रमकी भेट।

बैशाख बदी ३ गुरुवारको पिछले दिनसे बादशाह खुर्रमके घर गया। उसने दूसरी भेट फिर दिखाई। पहले जब उसने मेवाड़ से आकर मुजरा किया था तो एक प्रसिद्ध माणिक्य जो रानाने मुजरा करते समय उसको भेटमें दिया था बादशाहको नजर किया उसका मूल्य जीहरियोंने साठ हजार बताया था परन्तु जैसी उनकीं तारीफ होती थी वैसा नहीं था। तौलमें ८ टंक था। यह लाल पहले राव मालदेवके पास था जो राठौड़के कौमका सरदार और हिन्दुस्थानके बड़े राजोंमेंसे था। उसमे उसके बेटे चन्द्रसेनको मिला। चन्द्रसेनने विपदमें राना उदयसिंहको बेच दिया। उससे राना प्रताप ने पाया। प्रतापसे गना अमरसिंहको मिला था। इसके वरमें इसमे बढकर कोई पदार्थ नहीं था। इसलिये इसने जब राना खुर्रमसे मेल किया तो इस माणिक्य को अपने सारे हाथियों समेत खेचार (भेट)में दिया था। बादशाहने उस पर यह लेख खदवाया “सुलतान खुर्रमको रानाने सेट किया।"

उसी दिन और पदार्थ भी खुर्रमको भेटमेंसे बादशाहने लिये थे। उनमें फरंगियोंका बनाया हुआ एक बहुत सुन्दर बिल्लौरी सन्दूकचा, कई पने, तीन अंगूठियां, चार इराकी घोड़े और दूसरी फुटकर चीजें अस्सी हजार रुपयेकी थीं।

इस दिन बादशाह उसके घर गया तो उसने बहुत बड़ी भेट चार पांच लाख रुपयेकी सजाई थी। जिसमेंसे बादशाहने एक लाख रुपयेके पदार्थ उठा लिये।

कुंवर कर्ण ।

बादशाह लिखता है-"कुंवर कर्णके बिदा होनेका मुहूर्त समीप आगया था और मैं चाहता था कि उसको अपने बन्दूक लगानेसे भी कुछ परिचित करू। इतनेहीमें शिकारी लोग एक सिंहजीकी खबर लाये। मेरा यह नियम है कि शेरके सिवा औरको नहीं


यह शब्द योंही लिखा है।