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संवत् १६७१।

करके मिर कसाया। खुरमको पासे हुक्म हुआ कि उसबो दहने हाथकी श्रेणी में सवके ऊपर खड़ा करें।

फिर बादशाहने खुर्रमसे फरमाया कि जाकर अपनी माताओंसे मिलो। खिलअत खासा जो चार जड़ाऊ कुब्द का था, जरोको बनी हुई कवा और एक मोतियों की माला उसको इनायत हुई। खिलअतका मुजरा करनेके पीछे खासेका घोड़ा जड़ाऊ जीनका, और खामका हाथी उसको दिया। कर्णको भी उत्तम खिलात और जड़ाजतलवार मिली।

जो अमौर साथ गये थे उनपर भी यथायोग्य पा हुई।

कर्ण पर छपा।

बादशाह लिखता है कि कर्णका मन लगाना जरूर था वह पशु प्रति जा की सभा नहीं देखी थी और पहाड़ों में रहा आया था इसलिये मैं नित्य नई कृषा उसके जपर करता था। मुजरा करने के दूसरे दिन जड़ाऊ कटार और तीसरे दिन जड़ाऊ जोनका खासा इराकी घोड़ा उसको दिया। इसी दिन वह जनानी ड्योढ़ी पर गया तो जूरजहां बेगमको ओरसे भी उत्तम सिरोपाव जड़ाऊ तल- वार घोड़ा और हाथो उसे मिले। फिर मैंने बहुमूल्य मोतियोंको माला दी। दूसरे दिन खासेका हाथो तलापर सहित दिया । मैं चाहता था कि उसको अनेक प्रकारके पदार्थ दिये जावें। इस लिये तीन वाज तीन जुरै एक शाही तलवार इक्कीस बखतर एक शाही कवच एक अंगूठी लालको और एक पन्ने की उसे दी । महीने के अन्तमें मैंने सब भांतिके कपड़े कालीन नमद तकिये सब जाति को सुगन्ध सोनेके बर्तन २ गुजरातो बहल मंगाये। इन सब पदार्थों को अहदी लोग सौ थालों में सिरों और कन्धों पर उठाकर दीवान- खाने खासोआममें लाये और मैंने सब कर्णको बख्श दिये।"

बादशाहका दान।

बादशाहने यह नियम बांधा था कि जो लोग कुछ मांगनेको दरबारमें आते थे.उनको दोपहर बाल ब्यतीत होने पर बादशाहको