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जहांगीरनामा।


शाहोंकी सेवामें टीकाई बेटा बापके साथ नहीं आता है उसीके अनुसार राना भी अपने बड़े बेटे कर्णको साथ नहीं लाया था परन्तु खुर्नसके कूच कर जानेका मुहर्त उसीदिन सायंकालको था इससे उसने रानाको कर्ण के भेजनेके लिये शीघ्र ही बिदा करदिया ।

रानाके जानेके बाद कर्णने मुजरा किया। उसको भी खुर्रम ने उत्तम सिरोपाव जड़ाऊ तलवार, कटार, सोनेकी जीनका घोड़ा और खासेका हाथी दिया और उसीदिन उसको साथ लेकर अजमेर को प्रस्थान किया।

शिकार।

३ असफंदार (फागुन बदी ८) को बादशाह शिकारसे लौटकर अजमेर में आया। १७ बहमन माघ सुदी ८ को गया था। १६ दिन में एकसिंहनी तीन बच्चों सहित और तेरह नीलगायका शिकार हुआ।

खुर्रमका सम्मान।

१० (फागुन सुदी १) शनिवारको खुर्रमके डेरे देवरानीगांव में हुए जो अजमेरके पास है। बादशाह ने हुक्म दिया कि सब अमीर अगवानीको जावें और यथायोग्य शाहजादेको भेट दें।

खुर्रमका दरबारमें आना।

११ (फागुन सुदी २ रविवार) दूसरे दिन खुर्रमने बड़े दबदबे से सब सेनाओं के साथ खासोआम दौलतखाने में प्रवेश किया। दो पहर पर दो घड़ी दिन आये उसके मुजरा करनेका मुहूर्त था। उसने बादशाहकी सेवामें उपस्थित होकर बार बार सिजदे किये। १०००, और १००० मोहरें नजर तथा इतनेही रुपये और मोहरें न्योछावर की।

बादशाहने उसको पास बुलाकर छातीसे लगाया। उसका सिर और मुंह चूमा। उसने प्रार्थना की कि हुक्म हो तो कर्ण मुजरा करनेको आवे। बादशाहने फरमाया कि हां उसको लावें। बखशियोंने नियमानुसार लाकर उसको खड़ा किया। उसने मुजरा