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संवत् १६७१।

और कुछ उपाय न देखकर अधीन होनाही खीकार करके अपने मामा शुभकरणको हरदास झालाके साथ जो उसका एक बुद्धिमान सचिव था खुर्रमके पास भेजा और यह कहलाया कि जो आप बादशाहसे प्रार्थना करके मेरे अपराध क्षमा कर देवें और मेरे चित्तकी शान्तिके लिये बादशाहके पंजेकी काप मंगवा देवें तो मैं आपके पास आऊ और टीकाई बेटे कर्णको बादशाहकी सेवामें भेजूं वह दूसरे सब राजोंकी रीतिके अनुसार सेवा किया करेगा। मुझे बुढ़ापेके कारण दरगाहकी हाजिरीसे माफी दीजावे।

खुर्रमने उनको अपने दीवान शुकलह और मीर सामानसुन्दर के साथ बादशाहके पास भेजा। बादशाह लिखता है कि मेरी नियत शुरूसे यथासाध्य पुराने घरानोंके बिगाडनेकी नहीं रही है मुख्य मन्तव्य यही था कि राणा अमरसिंह और उसके बाप दादोंने अपने बिकट पहाड़ों और सुदृढ़ स्थानोंके घमण्डसे न तो हिन्दुस्थानके किसी बादशाहको देखा है और न सेवा की है। मेरे राज्यमें उनकी वह बात न रहे। मैंने लड़केको प्रार्थनासे राणाके अपराध क्षमा करदिये। उसको शांतिके लिये प्रसादपत्र और अपनी हथेलीकी छाप भी भेजी और खुर्रमको लिखा कि तुम ऐसा करो जो यह काम बन जावे। जिससे यह प्रगट हो कि तुमने मेरे एक मनचाहे कामको पूरा किया।

खुर्रमने भी उनको मुल्ला शुक्रुल्लह और सुन्दरदासके साथ राणाके पास भेजा। उसने उसको बादशाही दयापात्र करके वह कृपापत्र और पंजेका चिन्ह दिया और यह बात ठहराई कि २६ बहमन (फागुन बदी २) रविवारको राणा अपने बेटों सहित आकर खुर्रमसे मेट करे।

बहादुरका मरना।

दूसरी बधाई यह थी कि बहादुर जो गुजरातके अगले बाद-शाहोंके वंशमें था और वहां उपद्रव किया करता था मरगया।