पृष्ठ:जहाँगीरनामा.djvu/२०५

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१८९
संवत् १६७१।

परिश्रम से नया निकला है। जब गुलाबका जल निकालते हैं तो उस के ऊपर कुछ चिकनाई आजाती है। उसको थोड़ा थोड़ा लेकर यह अतर बनाया गया है इसमें इतनी अधिक सुगन्ध होती है कि एक बंद हथेलीमें मल लोजाय तो मजलिसभर महकाउठती है और ऐसा मालूम होता है कि वहुतसे गुलाबके फूल खिलगये हैं। इसका तीव्र सौरभ ऐसा सुन्दर और सुरम्य होता है कि जिससे मुरझाया हुआ हृदय कमलसा प्रफुलित होजाता है। मैंने इस अतरके इनाममें एक माला मोतियोंकी उसको इनायत की। सलोमा मुलतान बेगम उस समय जीती थी उसने इस तेलका नाम. जहांगीरी अतर रखा।

हिन्दुस्थानको विचित्रता।

बादशाह लिखता है-"हिन्दुस्थानको हवा में बहुत विचित्रता देखी जाती है लाहोर जो हिन्दुस्थान और विलायतके बीच में है वहां इस ऋतु में तूत बहुत फला। और वैमाही मोठा और रमोला हुआ जैसा कि अपनी ऋतु गरमी में होता है।

कई दिन लोग उनके खानेसे प्रसन्न रहे। यह बात वहांके अखबार लिखनेवालोंने लिखी थी।

बखतरखां कलांवत।

बखतरखां कलांवत जिंसको आदिलखांने अपनी बेटी व्याही श्री और जो भ्रं पद गाने में उसका मुख्य शिष्य था फकीरी भेषमें प्रगट हुआ। बादशाहने उसको बुलाकर हाल पूछा । बहुत आदर किया। दस हजार रुपये सब प्रकारके ५० पदार्थ और एक मोतियों की माला देकर आसिफखांके घरमें ठहराया। बादशाहको समझा में यह आदिलका भेजा हुआ भेद लेनेको आया था और इस बात का पुष्टि मोर जमालुद्दीनको अर्जीसे भी हुई जो आदिलखांक पास गया हुआ था ।.उसने अर्जी में लिखा था कि आदिलखांन कहा है कि जो कुछ मान मर्यादा बखतरखांकी हुई है वह मरोही हुई हैं। यह जानकर बादशाहने और भी उस पर कृपा की। : वह