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जहांगीरनामा।

बाहशाह लिखता है कि नौकर चाकर क्या प्रजाने भी इस प्रसन्नतामें दान पुण्यके लिये बहुतसा द्रव्य देना चाहा परन्तु. मैंने किसीका कुछ नहीं लिया। सबस कह दिया कि अपने अपने घरों में जो चाहें फकीरीको बांटें।

कर्ण छेदन।

१२ शहरेवर २८(१) वज्जव (भादी बदी ३०) गुरुवार को बाद- शाहने दोनो कान छिदवाकर मोती पहने। क्योंकि बीमारी में यह मन्नत मानी थी कि जो खाजाजीक प्रभावसे अच्छा होजाऊंगा तो जैसे अन्तःकरणसे उनकी भक्ति करूंगा वैसही प्रत्यक्षमें कान छिदवा कर उनके दामों में मिल जाऊंगा।

बादशाहको कान छिदातें देख कर बहुत लोगोंने भी क्या दूर क्या हजूर में अपने कान छिदवा लिये। बादशाहने भी अपने रत्न- भाण्डारसे उनको मोती दिये । होते होत सर्वसाधारणमें भी कान छिदवानको चाल चल पड़ी।

२२ गुरुवार १० शाबान (भादी सुदी ११) को बादशाहको मौर वर्षगांठका तुलादान हुआ। इसी दिन मिरजा राजा भावसिंह हतार्थ और पूर्णकाल होकर अपने देशको गया। दो तीन महीने से अधिक न ठहरनेको प्रतिज्ञा करने पर उसको छुट्टी मिली थी।

६ आबान (कार्तिक बदौ ११) को किरावलोंने छः कोस पर तीन सिंहों को खबर दी। बादशाह दोपहर ढलतहो गया और तीनोंको बन्दुकसे मार लाया।

८ (कार्तिक बदौ १३) को दिवालीका. हन्द मचा। दरबारी लोग बादशाहकी आज्ञासे उनके समक्ष दो तीन रात जुआ खेलते रहे। खूब हार जीत हुई।;


(१) चंडूपंञ्चाङ्गको गणित से २७ ।:"

२) तु० ज० पृ. १३१ में २२ शहरेवर १० श बान गुरुवारको तुलादान होना लिखा है इसमें इतनी भूल है कि २२ शहरेवर तो गुरुवारको नहीं रविवारको थी और शाबानको वीं तारीख थी।