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संवत् १६७० ।

मुरतिजाखां दक्षिणी।

बादशाहने सुरतिजाखां दक्खिनीको जिमसे वर्षों तक उन्होंने पटेबाजी सौखी थी वरजिशखांका खिताब दिया।

पालन ।

दीन दरिद्र.और पालन करनेके योग्य लोग बादशाहकी आजा- नुसार रात्रि में उनके सम्मुख लाये जाते थे और वह प्रत्येककी दशा देखकर जमौन रुपये और कपड़े देता था।

अजमेर में प्रवेश।

५ शञ्चाल २६ आधान (अगहन सुदी ७) चन्द्रवारको अजमेरमें प्रवेश करनेका मुंहत्तं था इसलिये बादशाह. इस दिन तड़केही सवार हुआ। जब किला और खाजाजीका रोजा नजर आनेलगा तो एक कोससे पैदल चलने लगा विश्वासपात्र नौकर. आज्ञानुसार दोनों ओरसे मांगनेवालीको रुपये, देते जाते थे। चारघड़ी दिन चढ़े शहरमें पहुंचा और पांचवीं घडीमें जियारत करके दौलतखानको लौट आया।

दूसरे दिन हुक्म दिया कि इस पुण्यस्थानों सब रहनेवालों और शास्ते चलनेवालोंको. लावें और हरेकको योग्यताके अनुसार दान दिया जावे।

पुष्कर।

७ आजर (पौष बदौ ३). को बादशाह हिन्दुओंके तीर्थ पुष्करके देखनेको जो अजमेरसे तीन कोस है गया और जलमुरगियां मारी। तालाबके तट पर नये पुराने मन्दिर भौ देंखे जिनमें अमराराणाके चचा राणा सगरने जो बादशाही दरबारका बड़ा अमौर था लाख रुपये लगाकर एक भड़कीला मन्दिर बनवाया था। बादशाह उसमें गया और वहां बाराह अवतारकौं मूर्ति देखकार हुक्म दिया कि इसको तोड़कर तालाबमें डाल देवें। फिर एक पहाड़ीपर सफेद बुझ और उसमें हर तरफसे आदमियोंको जाते हुए देखकर हाल घूछा तो लोगोंने कहा कि वहां एक योगी रहता है, जो सूर्ख