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जहांगीरनामा।

उसीका अनुसरण करता है। इसमें बहुतसे लाभ देखे जाते हैं। संसारके और मनुष्योंके वृत्तान्त विदित होते हैं। जो इसके गुण सविस्तर लिखे जावें तो बात बढ़ती है। उन दिनोंमें लाहोरके विकायानवीमने लिखा था कि तीर(१) महीनेके अन्तमें दस आदमी शहरसे अमनाबादको गये जो १२ कोस है। जब लू चलने लगी तो एक वृक्षकी छायामें ठहर गये। फिर ऐसी हवा चली कि उसके लगतेही कांपकर नौ तो वहीं मर गये और दसवां बहुत दिनों तक कष्ट पाकर अच्छा हुआ। पक्षी जो उस वृक्ष पर बैठे थे सब गिरकर मर गये। उस प्रान्तमें इस वायुसे ऐसी हानि हुई कि जंगलके जन्तु खेतोंमें आकर घास पर लोटे और मर गये।

शिकार।

३१ अमरदाद गुरुवार (भादों सुदी ७) को बादशाह नावमें बैठ कर समूनगर गया।

३ शहरेवर (भादों सुदी ११) को खानआलमने दक्षिणसे आकर एक सौ मोहरें नजर कीं। बादशाहने इसको ईरान भेजने के लिये बुलाया था।

समूनगर महाबतखांकी जागीरमें था और उसने नदीके तट पर एक सुरम्य स्थान बनाया था, वह बादशाहको प्रिय लगा। महाबतखांने एक हाथी और एक पन्नेकी अंगूठी भेट की।

६ (भादों सुदी १४) तक बादशाहने शिकार किया। ४७ हरन आदि पशु मारे।

सौर तुलादान।

२० (आश्विन बदी १३) गुरुवारको मरयममंकानीके महलमें बादशाहके सौर जन्मदिवसका तुलादान हुआ। वह लिखता है कि इस बरस मेरा ४४वां सौरवर्ष पूरा हुआ।

ईरानके दूतकी बिदाई।

इसी दिन शाह ईरानका ऐलची यादगारअली और खानआलम


(१) यह महीना सावन सुदी ६ को समाप्त हुआ था।