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संवत् १६७०।

को बड़ा भारी उत्सव हुआ बादशाह राजसिंहासन पर बैठा। सब प्रकारके मादक पदार्य मंगाये और सब लोगोंको अपनी अपनी रुचिके अनुसार खाने पीनेकी आज्ञा दीगई। प्रायः सब लोगोंने शराब कबाबका सेवन किया। ईरानके दूत यादगारअलीको सौ तोलेकी एक मोहर जिसका नाम कोकबेताला था दीगई। मज- लिसका रंग खूब जमा। उठते समय बादशाहने हुक्म दिया कि सव सामग्री और सजावट लाद लावें।

मुकर्रबखांकी भेटमें बारह इराकी और अरबी घोड़े थे जो जहाजमें आये थे और फरंगियोंका बनाया हुआ एक जड़ाऊ जीन था।

मोमयाई।

बादशाहने मुहम्मदहुसैन चिलपीको जो जवाहिर खरीदने और अनोखे पदार्थोंके ढूंढ़ निकालने में प्रवीण था कुछ रुपये देकर ईरानके मार्गसे अस्तंबोलके उत्तम द्रव्य खरीद लानेके वास्ते भेजा था और उसको मार्गमें ईरानके शाह अब्बाससे मिलना पड़ता इस लिये एक पत्र उसके नाम भी लिखदिया था। वह मशहदके पास शाहसे मिला। शाहने पूछा कि किन किन बस्तुओंके खरीदनेका हुक्म है उसने बहुत आग्रहसे सूची दिखाई। शाहने उसमें फिरोजे और मोमयाईका नाम देखकर कहा कि यह चीजें मोल नहीं मिलती हैं मैं उनके वास्ते भेजता हूं। यह कहकर छः थैलियां जिनमें तीस सेर फिरोजोंको मट्टी थी चौदह तोले मोमयाई और चार घोड़े इराकी जिनमें एक अबलक था उसको सौंपे और एक पत्र भी लिखदिया जिसमें मट्टीके तुच्छहोने और मोमयाईके कम होनेकी क्षमा मांगी थी।

जब यह चीजें बादशाहके पास पहुंचीं तो बहुत निकम्मी निकलीं बेगड़यों और नग बनानेवालोंने बहुत छान बीन की पर एक फीरोजा भी अंगूठीके लायक नहीं निकला जैसे फिरोजे शाह तुहमारस्पके समयमें निकले थे वैसे खानमें नहीं रहे थे यही शाहने भी अपने पत्रमें लिखा था।