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संवत् १६६९।

खबर आई यह बाबर बादशाहकी नवासी गुलरुख बेगमकी बेटी थी। बापका नाम मिरजा नूरुद्दीन था। हुमायूं बादशाहने अपनी यह भानजी अति कृपासे बैरामखांको दी थी बैरामखांके मारे जाने पर अकबर बादशाहने सलीमा सुलतानसे निकाह कर लिया था।

बादशाह लिखता है--"जितने अच्छे गुण और लक्षण इसमें थे उतने सब स्त्रियों में नहीं होते हैं।"

वादशाह एतमादद्दौलाको उसके उठाने और उसीके बनाये मण्डाकरबागमें उसको रखनेका हुक्म देकर दहराबागसे कूच कर गया बेगमकी अवस्था ६० वर्षकी थी।

काबुल।

७ दे (पौष सुदी ५) को ख्वाजाजहांने काबुलसे आकर १२ मोहरें और १२ रुपये नजर किये। बादशाहने कुलीचखां सूबेदार काबुल और खानआलमके परस्पर मेल न होनेके समाचार सुनकर इसको इस बातका निर्णय करनेके लिये कि किसका कसुर है भेजा था काबुल जाने और आने में इसको ३ महीने ११ दिन लगे थे।

राजा रामदास।

इसी दिन राजा रामदासने दक्षिणसे आकर १०१ मोहरें भेट कीं। बादशाहने इसको घोड़ा खिलअत और तीस हजार रुपये देकर कुलीचखां और दूसरे अमीरोंके समझानेके वास्ते भेजा जिनमें अनबन होगई थी।

दक्षिण।

१५ बहमन (माघ सुदी १३) को शाहनवाजखां दक्षिणसे खानखानांका भेजा हुआ आया एक सौ मोहरें और एक सौ रुपये नजर किये।

जब दक्षिणके मामले अबदुल्लहखांकी भागदौड़ और अमीरों की फूटसे ठीक नहीं हुए तो दक्षिणियोंने अवसर पाकर अमीरोंसे सन्धिको बात छेड़ी और आदिलखाने कहलाया कि जो यह काम मेरे ऊपर छोड़ाजावे तो ऐसा करूं कि जो देश बादशाही अधीनता